नए शहर में मेरा मन यूं मचलता है एक नई पहचान वाला शख़्श मेरे बगल में चलता है क्या हाथ बेवजह पकड़ लूं उसका या बोल दूं अकेले सड़क पार करने में मुझे डर लगता है
एक मुलाक़ात भर काफी है, यादें संजोने के लिए.. क़रीब आ जाएं बिना मुलाकातों के, ना डरें किसी को खोने के लिए.. यूँ इश्क़ को कभी मुक़ाम मिले, जरूरी तो नहीं ख़याल भर में इश्क़ हो, काफी है इश्क़ होने के लिए