कहाँ तलाश करोगे,
तुम मुझ जैसा कोई..
जो तुम्हारे सितम भी सहे,
और तुमसे प्यार भी करे.... ❤🌸💫-
दिल को सुकून आंखो को राहत है,
तुम्हें बस यूं ही देखते रहे यही मेरी चाहत है...❤🌸💫-
मुझे उस लड़की संग बांध देना हे महादेव,
जिसने कभी प्रेम ना पाया हो...
जो प्रेम जानकर भी उससे अनभिज्ञ रही हो,
जिसके पास अपनों की भीड़ हो पर अकेली हो..
उसके अकेलेपन को बटोरना चाहता हूं ,
उसी के संग अपनी जिंदगी संवारना चाहता हूं...
अपना जीवन उसमें देखना चाहता हूं,
मैं अपने हिस्से का प्रेम भी उसको देना चाहता हूं...❤️😊💫-
कोई कलिंग का युद्ध जीतने से काफी मुश्किल है ,
प्रेम में हारी हुई स्त्री का दिल जीतना...
क्योंकि प्रेमी हो जाना जितना आसान है ,
विछोह भोगना उतना दुष्कर...
प्रेमिकाएँ प्रेमियों से ऐसे अलग होती हैं ,
जैसे दुनिया का सबसे बड़ा वियोग है बेटे का माँ से दूर हो जाना
जैसे कौशल्या से राम...
अशोक हो जाना महान नहीं ,
बुद्ध हो जाना विरल नहीं...
मुश्किल है यशोधरा होना और यशोधरा का
उस ईश्वर को घर में पूजा जाना...
जिस ईश्वर को ढूंढने बुद्ध घर से बाहर निकले...
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साथ तुम चल दो अकेले में तो डर लगता है ,
बिन तुम्हारे हमें मुश्किल ये सफ़र लगता है...
नेकियाँ करने में अब यूँ भी तो डर लगता है ,
तुहमते लगती हैं इल्ज़ाम भी सर लगता है...
सिर्फ पल भर को ही दीदार तेरा हो जाए ,
चांदनी रात में फ़िर फीका क़मर लगता है...
नूर बिखरा है तेरा हर सूँ ए मेरे मौला ,
ग़मज़दा फ़िर यहाँ क्यों कोई बशर लगता है...
रूठ कर जाते हो जब दूर कभी मुझ से तुम ,
आँखें दरिया सी तो सहरा सा जिगर लगता है...
जेहन में एक गुबार उठता है अक्सर मेरे ,
आपकी बातों में मुझको तो हुनर लगता है...
साथ हँसते हो "भावसार" के यूँ ही अक्सर तुम ,
मुझको हँसता सा फ़लक और क़मर लगता है...
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इश्क़ में हमने बेहिसाब बेचे हैं ,
नीद बेची है ख़्वाब बेचे हैं...
अस्ल चेहरा मेरा बिका ही नहीं ,
उसने कितने नक़ाब बेचे हैं...
उम्र भर के ही वफाओं के सौदे ,
ख़ुद को करके ख़राब बेचे हैं...
हर गली खुश्बुओं से महकेगी ,
हमने इतने सारे गुलाब बेचे हैं...
हम तरसते रहे चराग़ों को ,
आपने आफताब बेचे हैं...-
बहुत भूखा हूँ आदत है धोखा खाने की,
मुझे नज़ाकत सीखनी है भूल जाने की...
मन की दीवार पसीज गयी तेरी यादों से,
कोई तरकीब बताओ सीलन भगाने की...
जब ये आशियाने डूबा दिए तेरे ईश्क़ ने,
तो सोने दो क्या जरूरत मुझे जगाने की...
बेतहाशा मासूम बना घूमता हूँ मेरी जान,
कोई तादाद नहीं मेरे दर्द के ठिकाने की...
हमारे ज़ख्म नासूर बन गए तो क्या हुआ,
मुझको सज़ा मिली है नज़रे लड़ाने की...
मैंने तबाही का मंज़र नजदीक से देखा है,
मैं बर्बाद हूँ तो कोई बात नहीं घबराने की...
भावसार किस कम्बख़्त ने सलाह दी थी,
ऊंची उड़ान के परिंदों से दिल लगाने की...-
प्रेम के दो रंग ,
एक मिलन और एक विरह ,
एक नाम समर्पण का दुसरा त्याग का...
एक बिन बोले आँखों की बात समझना ,
एक दूर रह के दुआओं में याद करना...
एक सुबह से शाम का इंतज़ार
तो एक अगले जन्म में मिलने की
फ़रियाद करना...
एक कमियों को नज़रंदाज करना ,
एक किसी कमी के कोई मायने ना होना..
एक रुक्मणी बन जीवन भर साथ रहना ,
एक राधा बन हृदय की धड़कन बनना....
प्रेम के दो रंग ,
कैसे कहें कौन सा रंग गहरा किस से ,
समर्पण या त्याग दोनों की तुलना कैसी ?
समर्पण में अहम् ना आए तो वो श्रेष्ठ ,
विरह का कारण अहम ना हो तो वो श्रेष्ठ..
प्रेम तो प्रेम है जीवन का सार यही
सृष्टि का आधार यही अहम् का स्थान कहाँ...
अहम् हो तो फिर वो प्रेम कहाँ...
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हमारी आँसू की हर बूंद तुम्हारी याद में ही गिरती हैं ,
कभी दीदार से पहले गिरती है ,
कभी तेरे दीदार के बाद गिरती है....
हम चूम ले उस राह को जो तुम तक लेके जाती है हमे,
क्या लिखे हम दिल की हकीकत हमारी आरजू बेहोश है...
अर्जी पर है आँसूओं की बरसात और
कलम हमारी एकदम खामोश है.....-
नई राह पर ज़ख्म पुराने मिले ,
फिर वही दर्द हमको पुराने मिले...
खींची है लकीर दिल में उसने कुछ इस तरह ,
किताबें नई सवाल पुराने मिले...
ये और बात है वो अपने दायरे से निकले ही नहीं ,
वरना हमारी कहानी में भी ज़माने मिले...
वो हो सकती है अपनी दुनिया की बेगम ,
मगर हमसे जब भी मिलें उसके ख़्यालात वही पुराने मिले...
वो मिले तो अपनों की तरह ,
पर ज़ख्मों पर नमक छिड़कते मिले...
वो कभी तो मिले मुझसे मेरी तरह
अब तक किस्से उसे अधूरे मिले...
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