आज पैसों की बढ़ गई है इतनी अहमियत
कि उससे ही नपती है इंसां की शख्सियत.
पैसों से ही मिलता है दुनिया में मान-सम्मान
पर इससे खरीदा नहीं जा सकता स्वाभिमान.-
अपनी मेहनत और अक्ल से
थोड़े पैसों से ही
अपने कर्म के पौधे को
सिंचित कर
धन और समृद्धि के वट-वृक्ष में
बदल देते हैं कुछ बिरले.-
रब से बस यही माँगा है मैंने साजन,
उम्र भर छूटे ना मुझसे तेरा आँगन.
तुझसे ही तो मेरी सारी दुनिया है,
तू नहीं तो दुनिया में फिर क्या है?
जब मान लिया है दिल ने तुझे अपना,
तुझसे ही जुड़ गया है हर इक सपना.
हर सुख-दुःख में तेरे संग जीना है स्वीकार,
तू साथ है तो हर बाधा को कर लेंगे हम पार.
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क्या सिर्फ़ पैसों का पेड़ लगाकर ही,
जी पायेंगे हम अपनी पूरी ज़िंदगी?-
पैसों के पेड़ लगाने की ज़िद में
इतने भी मसरूफ़ न हो जाना
कि मुश्किल हो जाए इक दिन
अपनों को भी अपने करीब लाना.-
आओ! यहीं आसमां के तले इक घर बना लें ,
इन खूबसूरत नज़ारों से उसे प्यार से सजा लें.-
जैसे एक पौधे के पनपने के लिए
बेहद जरुरी है मिट्टी,धूप और पानी.
वैसे ही सच्चे प्यार और विश्वास से
खूबसूरत हो जाती है हर जिंदगानी.
जिन किस्मत वालों को मिलता है
अपने हमसफ़र का सच्चा प्यार ,
उनके लिए पतझड़ का मौसम भी
लेकर आता है खुशियों भरी बहार.
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थामा है जो आज हाथ तेरा,
अब उम्र भर न छोड़ेंगे सनम.
तुम भी बस इक वादा कर लो
कि यूँ ही चलोगे मिलाकर कदम.-
कोई भी जानने की कोशिश नहीं करेगा
कि क्या कह रही हैं तेरी दीदा-ए-तर?
फिर क्यों किसी के सामने खुद को
कमज़ोर साबित कर रहा है तू रोकर.
तेरे आँसू पोंछने कोई नहीं आएगा
पर तेरा मज़ाक हर कोई उड़ाएगा.
पी ले मुस्कुराकर अपने दर्द का ज़हर,
फिर तू चैन से इस दुनिया में जी पाएगा.-