28 OCT 2020 AT 20:47

उदास करती है चांदनी.
रात की आगोश में जब सोते है ये सितारें,
अक्शर तेरी बांहो का शूकुन याद आ जाता है,
में तिलमिला जाती हूं सहम जाती हूं,
बेबाक बनकें निंद से अकसर उठ जाती हूं,
तेरे इश़्क के धूंऐ को सिनें में कैद करके रख्खा है,
चांदनी की ठंड सी लो में तेरे इश़्क के धूंऐ से खूद को महफूस रखते है,
जब चांद को चांदनी संग,तारो संग यहां तक की हवा के संग इश़्क फरमाएँ देखा करतें है!
सच मानों उदास कर देती है ये चांदनी,
में टूट सी बिखर सी जाती हूं,
और तेरे ख्यालों की महक से खूद को सवंर देती हूं.
हेमांगी

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