तुम्हारी बेरूख़ी ने.
सब सही था ,सब अच्छा था,
फिर किस बात का मसला था!,
हमारे रिश्ते की कश्ती जिंदगी के सफर में धीरे धीरे प्यार से सरक रही थी,
अभी तो हमनें ख्वाबों के नगर में साथ रहेनें का ख्वाब सजाया था,
में बोली थी और तु शरमाया था,
जिंदगी की राह में साथ चलनें का वादा भी कीया था,
फिर कौन सा सैलाब उठा ,कौन सी गुस्ताखी हुई!,
या वक्त के हाथो जिंदगी थम सी गई,
सब कुछ मुजे़ गवारा है,
सब कुछ सेह भी लूंगी,
पर तुम्हारी ये बेरूख़ी मुजे़ और हमारे रिश्ते को कहीं जीते जी ना मार डाले!
हेमांगी-
29 SEP 2020 AT 22:50