तुम नहीं चाहते.
माना की में बावरी हूं चंचल हूं
पर ये भी तो सच हैं ना की इश़्क तुमसे बे-इंतेहा करती हूं,
तुम मेरे लिए सूरज की उस किरन जेसे हो जिसे सोचते ही में खिल सी जाती हूं,
तुम मेरे लिए उस केनवास की तरह हो जिस पर में मेरे इश़्क के रंग बिखेरना चाहती हूं,
माना की तूम मेरी जिंदगी में उस दो पहरी धूप में आए,
जब ख्वाबो के पन्नों पर इश़्क की श्याही सूखने लगी थी,
सब की भीड में भी मैं तन्हा थी,
तूमने मेरी जिंदगी में जो रंग बिखेरे है वो फि़र से सूख जाए!
तुम नहीं चाहते मेरी बेरंग जिंदगी में कुछ रंग भर जाए!
जिंदगी में अधूरा रहा ख्वाब फि़र से जिया जाए!
हेमांगी-
21 SEP 2020 AT 17:29