तुम भी थे और मैं भी थी,
जब हम पहली बार मिले थे,
वक्त ठ़हरा था,
मौंसम बदला भी था,
निगा़हों ने निगा़हों से कोई वायदा भी किया था,
वक़्त के कागज़ पे मैंने ईश़्क से तेरा नाम लिखा था,
तु मुस्कुराया था और मैं शरमाई थी,
हवा में मीठी सी खूश्बूं छाई थी,
शायद,
हां,शायद लम्हों की ही नज़र लग गई उस वक़्त को,
जो आज़ तुम और मैं आगे बढ़ गऐ,
पर वो वक़्त आगे बढा़ ही नही!,
इश़्क की छुअन से वो लम्हां पिघ़ला ही नहीं,
तुम भी हो और मैं भी हूं,
मुज में ही बसे बसे तुम हो शायद.
हेमांगी-
26 DEC 2020 AT 21:51