तन्हाई का ये मंज़र
इन्सानों का ये कैसा मेला है!
भीड़ में सब साथ होकर भी वो अकेला है.
यादों की मिट्टी में महकता है वो रिश्ता,
जो दिन के उजालों में सोया सोया सा है.
चलते रहते है उन गुमनाम रास्तों पर,
जिस का हर मोड तुजसे कटा कटा सा है.
तन्हाई का ये मंज़र कहां ले जाता है सबको,
अकेले ही अकेले घूंट रहे है यहां सबतो.
हेमांगी
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20 JUN 2020 AT 22:23