तेरा इश़्क.
तेरा इश़्क मैंने उस जगह छु़पाए रख्खा है जहां ना कोई जा सकता है और ना कोई ठहर सकता है,
तेरे इश़्क को रोज़ मैं कतरा कतरा पी लेती हूं जी लेती हूं,
वो इस कदर मेरें ज़हन में बस गया है की उसे कहां रख्खा था!वो अब धूंधला सा याद है,
तेरे इश़्क की छुअन से अब मैं रोज़ नयी नयी बन जाती हूं,
तेरे इश़्क को ख्याल की उम्र से दूर रख्खा है,
ये जिस्म अब आहिस्ता आहिस्ता जलता आफ़ताब बनने लगा है,
पर तेरा इश़्क आज भी उस कौनें में संभालके रख्खा है,
रोज़ रोज़ उसे पी कर और जवां हो जाती हूं.
हेमांगी-
20 OCT 2020 AT 7:27