तेरा इश़्क.
तेरा इश़्क कुछ इस तरह मुझ में बसा है जेसे बसरों से ज़डे जमाएं खडा हो कोई पेंड़ जेसे,
तेरे इश़्क की महक से महकतां रहता है जिस्म मेरा,
तेरी यादों की टहनियों पर रोज़ मेरे इन्तजा़र का पंछी बैठता है,
तेरा इश़्क मुझ में कभी कभी धूप सा तो कभी कभी छांव सा लगता है,
मेरे भीतर तुम अपनीं जड़े गडा़ए खडे हो,
ओर में प्यासी सी धरती सी तुम्हारे इश़्क को महसूस कर के महकती रहती हूं,
में खूश हूं क्योंकी तुम खूश हो,
शायद अब हम इश़्क की उस टहनीं पर मिलेंगे जहां इन्तजा़र का पंछी कभी बैठा करता था,
शायद यही इश़्क है,
तेरा इश़्क.
हेमांगी-
16 OCT 2020 AT 22:35