रोक लेना था मुझे.
माना की कुछ बचपना है मुझमें!
कुछ ख्वाबों के गुल्लक से रोज़ खेलना अच्छा लगता है मुझे,
रोज़ रोज़ एक नया ख्वाब रख्ती हूं उस गुल्लक में,
माना कुछ नादान परिंदो सी हूं,
आज़ाद हूं,बिंन्दास हूं,
पर अपनी सरहदो के ही आसपास हूं,
जब शाम का सूरज़ ढलता है और चाँद अपनी बारात ले कर आता है,
मुझे अच्छा लगता है अस बारात को अपनें छत पर देखना ,महसूस करनां,
दिल के किसी कोनें से एक ही आवाज़ आती है जब में तुम्हे देखती हूं,
जिन्दगी के हर लम्हें में तुम्हे अपनें पास रखना,
अगर तुम्हे ये गवारा नहीं है तो रोक लेना था मुझे जब इन आँखो में तुम्हें जब में बसा रही थी !
दिल के मंदीर का तुम्हें भगवान बना रही थी!
हेमांगी-
22 MAY 2021 AT 22:36