2 APR 2020 AT 23:51

रात यह कह कर छेड़ती है,
मुक्म्मल जो ना हो पाया ख्वाब ,
उसे सपनों कि आगोश में पूरा करने कि ख्वाहिश रखते हों !
जो मिला ना दिन के उजालों मैं,
उसे रात कि चांदनी मैं ढूंढते हों!
हर रोज ऐ रात छेडती हैं हकीकत और खवाब कि कश्मकश फंसे बेबस इन्सान को.
हेमांगी

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