21 FEB 2020 AT 0:04

रात जैसे नदी है,
अपने आप मैं गहरी है,
छुपते है हजारों राज़ रात कि आगोश में
टूटे हुए ख्वाब के मिलते हैं निशाना जैसे तकिए पे,
रात जैसे नदी हैं

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