मिलूंगी से लेकर मिलेंगे तक का सफर हसीन था,
सब एक ख़वाब सा लगने लगा था,
फिर किसी की नज़र का काला धागा रिश्तें पर बंध सा गया,
इश़्क का आफताब मेरे आंगन में भी उगा था और तेरे आंगन में भी था,
इश़्क की तपती धूप में भी तूम्हारे आंगन के आश्मां का बादल काला सा होने लगा था,
कौन सा वो तूफान आया जो तेरी ज़िंदगी के पन्नों पर से मेरी इश़्क की शाही को सूखा के ले गया,
धीरे धीरे तेरे दिल में जो इश़्क का तूफां था वो शांत सा होने लगा,
मचलने वाला दिल,जो मेरी एक आवाज़ की आहट से बाग बाग हो जाता था,
आज वहां तक मेरे बंध लबो के पीछे चिखती आवाज़ सून नही पा रहा,
अब तक तुम मुझ से परदा कीये जा रहे थे ,
अब तो तुमने मेरी आवाज़ से भी परदा करना शूरु कर दीया.
हेमांगी
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