3 SEP 2020 AT 7:54

मेरी मजबूरी को समजो.
तुजसे नाराज़ थी,रुठी हूई थी,
माना की हम दोनो के बीच बातो का सिलसिला कहीं से खिचाखिचा सा था,
ना तुम कहीं गलत थे,ना मै भी सही थी,
हम दौनो के बीच गलतफहमी की दिवार खडी थी,
ना कभी तुमने जानने की कोशिश की और ना कभी मै तुम्हे बता सकी,
काश!तुम मेरी मजबूरी को समजते,
एक बार पलट के इन निगोहों में देखलेते.
हेमांगी

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