12 SEP 2020 AT 14:18

मैं और तुम
नदि के उन दो किनारों के जैसे जो साथ तो चलते है पर कहीं मिल नहीं पाते,
उस आस्मां की तरह जो धरती को देख तो सकता है पर बांहो में समा नहीं सकता,
उस पींजरे में कैद पंखी की तरह जो उडना चाहता है पर पींजरे से निकल नहीं सकता,
उस रात की तरह जो रोज़ आती है तारों की बारात ले कर पर चांद को छू नहीं सकता,
और तो क्यां कहूं मैं और तुम उस रात और दिन की तरह जीन कां साथ हो कर भी साथ न होना जरूरी है.
हेमांगी

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