11 MAY 2021 AT 15:58

मै भी उड़ना चाहती हूं,
बादलो के पार जाना चाहती हूं,
कभी कभी लगता है जेसे मेरे पर सिकुड़ से गऐ है,
तो कभी लगता है जेसे किसीनें सोनें से पिंजरें में उसे कैद कर लिया है,
मै भी बेवज़ह ग़ुनगु़नाना चाहती हूं,
मै भी बादलो के पार जाना चाहती हूं,
ना ही कोई मुझे ऐसी रंज़ीश है,
ना ही कोई सिकवा़ या गीला है,
मैै तो बस अपनें बनाये रास्तो पर चलनां चाहती हूं,
मै भी बादलों के पार जाना चाहती हूं.
हेमांंगी

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