ख़याल के शहर में कहीं मेरा इश़्क गुम हो गया,
ना कोई जगह है,ना कोई दरवाजा,और ना ही कोई झरोखा,
में सहमी सहमी सी ढूंढती हूं,
पर अब ख़़्यालों की पगडंडी तंग लगनें लगी है.
हेमांगी-
18 OCT 2020 AT 21:41
ख़याल के शहर में कहीं मेरा इश़्क गुम हो गया,
ना कोई जगह है,ना कोई दरवाजा,और ना ही कोई झरोखा,
में सहमी सहमी सी ढूंढती हूं,
पर अब ख़़्यालों की पगडंडी तंग लगनें लगी है.
हेमांगी-