जब तुम लिखती हो।
जब तुम लिखती हो,
तब मुझे अपनी रूह से निकाल बेजान से पन्नो पर इस कदर सजा देती हो,
जेसे पन्नो मे जान सी बस जाती है,
ना कहे वो तुम्हारे हर अलफ़ाज पन्नो पे बिखर से जाते है,
पन्नो मे जेसे नई जान सी बस जाती है ,
वो लहराते है तिलमिलाते है और फिजा मे अपनी खूशबू फैलाते है,
दरअसल ये खूशबू तुम्हारे जिस्म से निकले हूए कतरा कतरा इश्क की है जो तुम मुझसे करती हो,
जो कभी ना बन पाई वो कहानी तुम लिखती हो,
तुम इश्क की कुछ इस तरह की दिवानी लगती हो,
जब तुम लिखती हो तब अपना दिल पन्नो पे रख देती हो।
हेमांगी-
1 SEP 2020 AT 8:55