27 APR 2021 AT 17:45

हम मिलें भी तो ऐसे.
हम मिलें जिंदगी के उस मुकाम पे जब उम्र का आफ़ताब धूप बरसा कर अस्त हो रहा था,
वक्त की रेत भी मानों हाथ छुडा कर हवा में खो रही थी,
मैं भी ठहर कर सोच रही थी की ये इश़्क का फूल मेरे आंगन में सुबह की नर्म धूप में क्यों न खिला!
जिंदगी की उस शाम में ही क्यों तु शामिल हुआ!
जहां जिंदगी का सूर्यास्त हो रहा है और रात को भी आने का मन मचल रहा है!
वक्त की शाहीं जहां उम्र को बेरंग कर रही है,!
अरमानों को भी अब सिलवटे गवारा नहीं है!
जिंदगी के दायरे अब जिंदगी को ही बांट रहे है,
हम मिलें भी तो ऐसे मिले जो कभी मिल कर भी ना कभी मिल पांए.
हेमांगी

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