9 SEP 2020 AT 22:14

एक डिब्बी ख्वाब की मैने खोल दी है,
अरमानों की तितली तिलमिला रही थी,
चूपके से आ कर मेरे कंधे पर बैठ गई,
आहिस्ता आहिस्ता उसे संवारने लगी तो हकीकत के पांव के पर फूटने लगे,
यहां वहां मुझे दौडाने लगी,
उस डिब्बी के कौने में एक सूनहरा ख्वाब मेरी ओर तांकजाक कर रहा था,
शायद उसे मेरी गोद में सोना था,
मैं सहसा गभराई,शरमाई ,
कैसे उस सूनहरे ख्वाब को गोद में सूलाउं?
हकीकत के पैर पर आंखे भी तो लगी थी,
जो मेरे अरमानो की डिब्बी को बंध होते देखना चाहती थी,
और मैं बावरी और एक ख्वाब बून रही थी.
हेमांगी

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