चाँद सुनता नहीं.
वो मेरी छत पर रोज़ आता है पर तुजे लाता ही नहीं,
ख्यालों के सैलाब में मेरी रुह को सूकुन देता ही नहीं,
जो मेरे अंदर यादो की लो जलती है उसे वो ख्वाबो की चाँदनी की ठंड़ देता ही नहीं,
ये जो अधूरें रहे रिश्तें की चूभन है उसपे वो मरहम लगाता ही नहीं,
ये चाँद कभी मेरे दील की बात सुनता ही नहीं.
हेमांगी-
9 APR 2021 AT 21:36