बिहरा की रातें.
बिहरा की ये रातें बहोत तड़पाती है ,
चद्दर की सिलवट़ों में ख्वाबों के फूल मूरज़ा जाते है,
बहार जो ठंड़ है वो भी तो अब मुझे जलाती है,
जितनीं यादों की चद्दर को समेंट़नी कोशिश करती हूं उतनी ही वो फिसलती जाती है,
ये बिरहा कि रातें ना सोने देती है ना ही ख्वाबों के समूद्र में गोते लगाने देता है.
हेमांगी-
4 APR 2021 AT 21:43