6 OCT 2020 AT 16:36

आज फिर से वो पुरानी शाम आइ,
कुछ उछलती,कुछ ठहरती,
धीरे से आके मेरे कानों में कहने लगी,
जेसे की कोई गजल गुनगुना ने लगी,
आंखो को बंध किया,
वो पुराना जमाना जिंदा हो गया,
वो शाम का शिंदूरी रंग बिखेरना,
वो हवाओ का धीरे-धीरे मुस्कुराना,
वो पुरानी यादो का जिंदा होना,
कुछ अनकही बातो का सिसकियां लेना।
हेमांगी

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