18 SEP 2020 AT 14:52

आज भी शाम गुजर जायेगी.
आहिस्ता आहिस्ता दिन तो फिर भी गुजर जाता है,
शाम होते ही तेरी यादों की बारीश में भीग जाते है,
कितना भी समजांए इस पागल दिल को पर ये दिल कहां मानता है!
आज भी तेरा इन्तजा़र इन बावरी निगाहों को है,
माना की ये इन्तजा़र के कोई माईने नहीं है,
फिर भी इन्तजार का इन्तजार करना अच्छा लगता है,
में सागर के किनारे की उस लहर सी बन जाती हूं
जिसे मीट्टी को गले लगाना है पर सागर को छोड नही शकती,
सब गुजर रहा है इन हाथो की लकीर से,
आज भी शाम गुजर जायेगी.
हेमांगी

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