अपनी परंपरा के साथ रहकर, मिट्टी के दीए जलाए
भुखा ना मरे कारीगर, दीपक इतिहास न बन जाए-
देख लो दुनिया वालों चट्टान है यह बेटियां
परिश्रम की पहली पहचान है यह बेटियां
सुख हो या दुख हो बेटियां थामे हाथ है
जीवन की हर जंग में बेटी हमारे साथ है
हौसला है बड़ा सब कुछ यह कर पाएंगी
बल से नहीं तो आत्म बल से कर जाएंगी
मौन है सारे पुरुष जो हरदम ताना देते थे
और घर की बेटी को बोझ कह बुलाते थे
आज यह बेटी पुरुष का बोझ उठा रही
और पसीना बहाकर पिता को ले जा रही-
लंबे समय के बाद फिर से घर की याद आई है
आंखों में नमी है और पेट भी है खाली
इसीलिए शायद अपनों की याद आई है
समय बदलता गया राहे भी बदलती गई
और वक्त के साथ-साथ मंजिलें भी बदलती गई
क्या करें मजबूरी है हाथों की काम से क्यों दूरी है
मशीनें बेजान है शायद इसीलिए मुंह मोड़ लिया
सांस लेती जमीन आज भी पुकार रही
पता है हमें वहां भी तकलीफ कम नहीं होगी
मां को ओढाते हैं हरी चादर हम जब जब
कभी बाढ़ तो कभी सूखा नोच के ले जाता है
फिर भी जीना है तो कुछ तो करेंगे
और मरना ही है तो अपने देश में मरेंगे
शायद मां को तसल्ली हो बेटा लौट के आया है
और सारे जहान की ठोकर खा कर आया है
जितनी तेज रफ्तार से गए थे सभी शहर
इतनी धीमी चाल से वापस गांव आए है
कुछ पल चैन के चाहता हूं मां की गोद में
और फिर शायद यह सूखा पेड़ भी हरा हो जाए
जब तक जिए हम अपनों के साथ रहे
भले थोड़ा खाए पर पेट भर जाए
कमाई हो कम पर अपने नजर आए
हमारी खुशी में अपने मुस्कुराए
और दुखों कभी तो दौड़ के पास आए
अपने अपनापन और अपनी भूमि से
अब हम कहीं न जाएंगे
यही हम अपनी जिंदगी बिताएंगे-
आज मदर्स डे पर वह बिल्कुल ना हो उदास
जिनकी मां स्वर्ग में है नहीं है उनके पास
मां की यात्रा खत्म हो पर ममता खत्म नहीं होती
साथ है वह सदा तुम्हारे बस नजर नहीं आती-
सोचा आज MOTHER'S DAY पर
मैं माँ के लिए कुछ लिखूं
मां शब्द इतना बड़ा है
इसके आगे मैं क्या लिखूं-
आज पूरी दुनिया माँ का दिन मना रही
हर दिन ये पूरी दुनिया माँ से ही जगमगा रही-
ओठों पे हसीं और आखों मे नमीं वाला एहसास है
ये दो रंगा आकाश भी लग रहा कितना खास है-
जरूरी नहीं हरियाली ही सुख दे हर किसी को
सुखी टहनिया भी हरियाली को उचाईया दे जाती है-
अक्स दिखाई देता है जब पीछे से रौशनी हो
रौशनी सामने से हो तो आंखें बंद हो जाती है-
पतझड़ और बरसात से ही फर्क नहीं पड़ता
छांव और धूप भी पत्तों का रंग बदल देती है-