आज फिर तेरे इंतजार में
शाम हो गई ,सारे पंछी अपने
अपने घर चले गये हैं
मेरी नजरे देख रही हैं पथ को
जिस ओर से तेरे आने की
आहट आने को हैं उस ओर
कभी कही से, टक टक की
आवाज सुनाई हैं ,मुझे तो
सहम जाती हूँ मैं ,देखने
लगती हूँ मैं, सोचती हूँ थोड़ा और
आगे चलकर देखती हूँ ,कही दिख जाए
लेकिन फिर कुछ नही दिखाई देता हैं
आज फिर तेरे इन्तजार में शाम हो गई
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