ऐसे कौनसे ज़ुल्म किए है मैने बता दो मुझे,
जो हर अपने ने मुझे पराया सा कर दिया है!
वो भागती सुबह में भी कुछ वक्त निकालना था
खुद से पहले उनकी भूख का ख्याल रखना था,
तो शाम-रात को भी सिलसिला कहा खतम था,
वो रातको उनके आने का इंतजार करना था
या अगली रात उनके साथ बैठना न भूलना,
वो ठंडी हवाओं में चंद गानों में मस्त हो जाना था,
इन्ही बीच कहीं अपनी पुरानी यादों को टटोलना,
वो उनकी छोटी से बड़ी जरूरतों का ख्याल करना,
या उनके खुशी में खुश और दुख में गमगीन होना,
वो हसीं ठहाकों के साथ बाहर घूमना फिरना था,
या उनके साथ अपने कपड़े और चीज़े बाटना,
वो उन्हें स्टेशन पर छोड़ने और लेने जाना था,
या कभी गर्मियों में उनके साथ मीठे आम खाना,
वो कभी उनके मुंह में निवाला देना, आंसू पोछना,
या उसको गले लगाके उसको कंधा देना था,
वो चुपचाप उनके गुस्से को घोल पी जाना था,
या अपना दर्द, गुस्सा, आंसू सब छुपाए रखना,
वो खून का रिश्ता न होकर भी भाई बनना था,
की उनकी जान खातिर जी जान लगा देना,
हालांकि बातें कई कड़वी रखी उनके सामने,
जो दिल की गहराइयों से थी जिनमें वो रहते थे,
दिल की बात और हालात अपनो से रखना,
अगर यही हमारा गुनाह है तो बता दो मुझे,
ऐसे कौनसे ज़ुल्म किए है मैने बता दो मुझे,
जो हर अपने ने मुझे पराया सा कर दिया है!
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