अंधे निकालते हैं आज नुख्स मेरे किरदार में..!
औऱ बहरों को ये शिकायत है कि गलत बोलता हूं मैं..!!-
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जबतक गुलाम थे तब सब एक तो थे..!
ये आज़ादी क्या मिली सब हिन्दू मुस्लिम हो गए..!!-
भला किसके लिए जन्नत बनाई है तूने ऐ मालिक..!
बता ऐसा कौन है इस जहां में, जो गुनहगार नही है..!!-
कैसे कह दू कि मुझे इश्क़ नहीं है तुमसे..!
मेरे लिए तो इश्क़ का मतलब ही तुम हो..!!-
बद-क़िस्मती को मेरी ये भी गवारा ना हुआ..!
हम जिस पर मर-मिटे वो कभी हमारा ना हुआ..!!-
जख्म खुद बता रहे हैं कि तीर किसने मारा है..!
हमने भला कब कहें किसी से यह काम तुम्हारा है..!!-
अब किसी की भी जरूरत महसूस नहीं होती..!
खुद को ही अब खुद के काबिल बना लिया है मैंनें..!!-
तँग नहीं करते हैं हम उन्हें आजकल..!
ये बात भी शायद अब उन्हें तँग करती है..!!-
बड़ी अजीब सी मोहब्बत थी तुम्हारी..!
पहले पागल किया, फिर पागल कहा और फिर पागल समझकर छोड़ दिया..!!-
आहिस्ता आहिस्ता मेरे दिल में दाखिल होकर..!
मुझे मेरे ही दिल से तुमने बेदखल कर दिया है..!!-