ᕼα𝐲Ã卂t uSM𝓐Ⓝ   (Hαყααƚ Uʂɱαɳ)
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💐मेरे ख़्यालात ,, मेरा क़लम💐
Joined 26 April 2020


💐मेरे ख़्यालात ,, मेरा क़लम💐
Joined 26 April 2020

हौसला-शिकनी-ओ-दुख के बाम तक पहुंचा दिया
जिंदगी ये तूने किस अंजाम तक पहुंचा दिया

इक शिकस्ता आरज़ू है इक थका हारा बदन
इस उम्मीद-ए-साये ने तो शाम तक पहुंचा दिया

ऐ मशक़्क़त आ क़रीं और थाम ले अब मेरा हाथ
बख़्त ने तो गर्दिश-ए-अय्याम तक पहुंचा दिया

कुछ न कुछ तो रहने देते यार अपने दर्मियाँ
रिश्ता भी तुमने बराए नाम तक पहुंचा दिया

ऐ ह़सीना तेरी हस्ती कोई ख़ाकिस्ता बदन
शायरों ने तुझको गुल-अंदाम तक पहुंचा दिया

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मैं तो आदाब-ए-रफ़ाक़त में हूँ ख़ामोश "ह़यात"
वो समझते हैं मुझे बोलना आता ही नहीं

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कुछ शेर ग़ज़ल के कैप्शन में है
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कुछ संभलिए, ढ़़लान है बाबा
ज़िन्दगी इम्तिहान है बाबा

उसको अच्छे से पढ़ लिया जाए
हम पे जो मेहरबान है बाबा

इसको शायर ही जान पाता है
चुप भी इक दास्तान है बाबा

उर्दू में भी तो बात किया कीजे
ये भी शीरीं ज़ुबान है बाबा

ज़िन्दगी सहल हो नहीं सकती
हर तरफ़ तो चढ़ान है बाबा

जिंदगी हाथ से फिसलती है
रुक के चलना, ढ़लान है बाबा

जिससे ख़ुशियाँ ख़रीद ली जाए
क्या कहीं वो दुकान है बाबा

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तेरे हर इक सवाल का अश्कों में था जवाब
तूने बिछड़ते वक़्त ये आँखें पढ़ी नहीं

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मुँह के बल मेरा कलेजा आ गया ऐ ज़िन्दगी
दुश्मनी है गर तुझे , अब मुस्कुरा ऐ ज़िन्दगी

हाय कितना बढ़ गया है दर्द की चींख़ों का शोर
सुन न पाया, फिर से कहना क्या कहा ऐ ज़िन्दगी

किस लिए पीछे खड़ी है, दुश्मनों का साथ दे
ज़ुल्म कर जी भर के तू भी, दिल दुखा ऐ ज़िंदगी

छोड़ कर हर एक उलझन आ गया हूँ सामने
चल बता अब, क्या है तेरा मसअला ऐ ज़िन्दगी

इतनी शिद्दत से लगाई है ह़कीकत ने रगड़
रेज़ा-रेजा हो गया है आइना ऐ ज़िन्दगी

इस तरह़ हर मसअला ह़ल होने के इमकान हैं
कुछ मेरी सुन, और कुछ अपनी सुना ऐ ज़िन्दगी

क्या ह़क़ीक़त, ख़्वाब तक में भागता रहता हूँ मैं
ह़ाल ऐसा हो गया है देख जा ऐ ज़िन्दगी

क्यों नहीं रुकता है तेरी सर परस्ती में "ह़यात"
चश्म-ए-नम से आँसुओं का सिलसिला ऐ ज़िन्दगी

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इस नए दौर में ज़रदार भी ज़र मांगे है
मुंह भी मीठा है मगर फिर भी शकर मांगे है

थक गया हूं मैं , घड़ी दो घड़ी आराम तो हो
बे-घरी मुझसे ज़रा देर को घर मांगे है

सोचता हूं कि इसे कैसे बचाए रक्खूं
घर की पाज़ेब तो दीवार में दर मांगे है

मैने इस दौर में साया भी झुलसते देखा
इतनी गर्मी है कि साया भी शजर मांगे है

सुब्ह-ता-शाम तो खाना है इसे माल-ए-हराम
फिर ये कमबख्त दुआओं में असर मांगे है

एक पावों हैं उठाने से नहीं उठते हैं
एक हिम्मत है मुसलसल जो सफ़र मांगे है

रोज़ सो जाता है अहसास थका हारा सा
और जिंदा-दिली पल पल की ख़बर मांगे है

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जाने क्या कह दे, ज़माने से बहुत डरते हैं
हम तेरे शहर में आने से बहुत डरते हैं

वक़्त-ए-आख़िर किसी राँझें को बिछड़ जाना है
यूं क़लम-कार फ़साने से बहुत डरते हैं

ज़िन्दगी दिल में सकत इतनी कहाँ है बाक़ी
हम तेरे नाज़ उठाने से बहुत डरते हैं

सुब्ह़ होते ही ये बच्चे कहीं लटके होंगे
अब बड़े हाथ उठाने से बहुत डरते हैं

किर्चियाँ मिलती है हर सुब्ह़ इन आँखों में "ह़यात"
यूं भी हम ख़्वाब सजाने से बहुत डरते हैं

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दो-चार घड़ी दर्द में आराम अगर हो
आजाऊँगा नज़दीक तेरे, शाम अगर हो

रब जाने कहाँ है वो कि ये जिसने कहा था
कर लेना मुझे याद कोई काम अगर हो

हर डाल बसेरा है जहाँ चाहें वो सो जाएँ
बे-घर से परिंदों को कहीं शाम अगर हो

यारो शब-ए-तन्हाई की औक़ात ही क्या है
कट जायेगी राह़त से कोई जाम अगर हो

फरहाद नहीं हूँ मगर उल्फ़त है उसी सी
मर जाऊँगा बे-मौत मेरा नाम अगर हो

देती है दुहाई कई सीताएँ कि आजाये
इस दौर-ए-ज़लालत में कोई राम अगर हो

मुमकिन नहीं अब होगी ख़रीदार जुलैख़ा
इस दौर में यूसुफ़ कहीं नीलाम अगर हो

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होता रहा भले ही ख़सारा घड़ी-घड़ी
देखा प ज़िन्दगी का नज़ारा घड़ी-घड़ी

गिरने पे उठने का भी हुनर सीख लीजिए
देता है यार कौन सहारा घड़ी-घड़ी

सारे सराब यूँ भी मुझे ह़िफ़्ज़ याद हैं
इक रह से ज़िन्दगी ने गुज़ारा घड़ी-घड़ी

चढ़ते-उतरते पिंडलियाँ मज़बूत हो गईं
ख़ुश हूँ बुलंदी से जो उतारा घड़ी-घड़ी

मैं एह़तराम-ए-ज़ात ने झुकने नहीं दिया
वरना नवाज़िशों ने पुकारा घड़ी-घड़ी

मेह़नत बहुत की पीछे मैं बस इस लिए रहा
जल कर बुझा नसीब का तारा घड़ी-घड़ी

मैं भी पकड़ के चल दिया फिर जिंदगी का हाथ
जब मौत ने "ह़यात" नकारा घड़ी-घड़ी

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