आंख किसी से लड़ जाती है
दिल में हलचल बढ़ जाती है
आंख से खूँ टपकाती है वो
याद जो दिल में सड़ जाती है
मांग ले गर तकदीर से उसको
किस्मत जिद पर अड जाती है
मुश्किल से वो मान गया भी
फिर कोई मुश्किल पड़ जाती है-
जिनसे उल्फ़त हो, उन्ही से ही जुदा करती है
क्या यही प्यार की तक़दीर हुआ करती है
जिनमें चलती थी सबा अब वो ज़माने न रहे
अब तो हर सम्त से बस लू ही चला करती है
इक हक़ीक़त है, चुरा लेती है, सारे सपने
एक उम्मीद है जो ख़्वाब बुना करती है
जब ज़रुरत हो मिरे ख़्वाब में आते ही नहीं
आँख रो-रो के सितम गर से गिला करती है
ये अलग बात है नींदों पे गिराँ है यारो
याद-ए-महबूब मगर लुत्फ़ दिया करती है
मुझको मालूम है आते ही नहीं हैं वापस
जाने वालों से मगर आस रहा करती है
कोई मौसम हो ज़माने में मुझे क्या मतलब
मेरे दामन में तो बरसात रहा करती है-
जब भी बाली से तेरी जुल्फ़ लडा करती है
ख़ूबसूरत हो, बहुत यार, कहा करती है
उसको ता-उम्र यही बात न समझा पाया
दोस्ती, प्यार का आगाज़ हुआ करती है
दिल से रिश्तों को निभाना भी ज़रूरी है सनम
सिर्फ़ बातों से कहाँ बात बना करती है
एक मैं, और अँधेरे में बला का मातम
एक तन्हाई है जो साथ रहा करती है
यूँ न होता तो यूँ होता, ये फ़क़त हैं बातें
ये मुह़ब्बत है, नसीबों से मिला करती है
मैं हूँ बीमार-ए-मुहब्बत मुझे मालूम नहीं
नींद जैसी भी कोई चीज़ हुआ करती है-
ज़ाहिरन दिल-पज़ीर है दुनिया
हाय ! कितनी शरीर है दुनिया
है कोई, जो ये कह सके मुझको
हां, मेरी दस्तगीर है दुनिया
देख, ख़ुदसे भी मुँह छुपाती है
सोच, कितनी ह़क़ीर है दुनिया
इसके आगे न रोइए साह़िब
सच कहूँ, बे-ज़मीर है दुनिया
है ख़बीसों की भी ख़बीस यही
और पीरों की पीर है दुनिया
इसको हल्का न जानिएगा "ह़यात"
बा-ख़ुदा सख्त़गीर है दुनिया-
सुल्ह़ होगी, फिर कोई फ़रमान माना जाएगा
जान के दुश्मन को मेरी जान माना जाएगा
सर उठाना सीख लीजे ज़ालिमों के सामने
सर झुकाना ज़ुल्म का सम्मान माना जाएगा
ना तो दस्तक, ना किसे के आने की उम्मीद है
मेरा घर दर-अस्ल अब वीरान माना जाएगा
आइए और अपने वादों को वफ़ा कर दीजिए
अहद शिकनी जंग का ऐ़लान माना जाएगा
फिर कोई हव्वा की बेटी ख़्वाब दिखलाने लगी
इब्न-ए-आदम फिर कोई ह़ैवान माना जाएगा
एक दिन ह़क़ की सदा उट्ठेगी तेरी बज़्म से
एक दिन शैतान को शैतान माना जाएगा
जाने कब इंसानियत का बोल-बाला हो "ह़यात"
जाने कब इंसान को इंसान माना जाएगा-
ज़िद पर अड़े हुए हैं ज़रा होश में रहो
दरिया चढ़े हुए हैं ज़रा होश में रहो
मत घोलो ज़हर शहर में इस काम के लिए
नेता पड़े हुए हैं ज़रा होश में रहो
शहर-ए-मुनाफ़िक़ीं में हो, लोगों के दिल तो क्या
मुंह तक सड़े हुए हैं ज़रा होश में रहो
चोर-ओ-पुलिस अलग हैं, ये माज़ी के दौर के
क़िस्से गढ़े हुए हैं ज़रा होश में रहो
दौलत की तह के नीचे मुह़ब्बत के खून के
छींटे पड़े हुए हैं ज़रा होश में रहो
क्या इश्क विश्क, गौर करो, बाग ए इश्क में
सब गुल झड़े हुए हैं ज़रा होश में रहो
कलयुग है ये "ह़यात", मुह़ाफ़िज़ के भेस में
रहज़न खड़े हुए हैं ज़रा होश में रहो-
पहले पहल तो यूँ लगा हम ख़्वार हो गए
पर उसके बाद रास्ते हमवार हो गए
वहशत, थकन, उदासी, तही-दस्ती, झुर्रियाँ
चेहरे पे कितने रंग नमूदार हो गए
खा कर पड़ोसियों के मकानों की धूप को
कमरे हमारे घर के हवा दार हो गए
वरना तो मार डालती ये बुज़दिली की रस्म
अच्छा हुआ जो वक़्त से बेदार हो गए
क्या बोलते हैं आ के सियासत के मंच पर
अब तो गधे भी साहिब-ए-गुफ़्तार हो गए
बेहतर है ऐ "ह़यात" कि जंगल में जा बसें
शहरों में रहने वाले तो खूँ-ख़ार हो गए
असबाब जिनके पास थे डरते रहे "ह़यात"
कागज़ की नाव वाले नदी पार हो गए-
पुर-अम्न तो हैं और कुछ आसानियाँ भी हैं
लेकिन सुकूत-ए-बह़्र में तुग़्यानियाँ भी हैं
चलिएगा सीधी राह पे चाहे त़वील हो
ऐ दोस्त शॉर्ट-कट में परेशानियाँ भी हैं
गर देखने हैं आपको छाले भी देखिए
सब कुछ नसीब ही नहीं क़ुर्बानियाँ भी हैं
कुछ यूं भी लग रहे हैं ये चेहरे बुझे-बुझे
शामिल ख़ुद-एत्मादी में ह़ैरानियाँ भी हैं
बच कर चले हैं इ़श्क़ से जितना भी हो सका
पर साथ-साथ अक़्ल के नादानियाँ भी हैं
डाकू, हरीफ, दोस्त, अ़दू और न हसिदीन
दुश्वार रास्ते में ये आसानियाँ भी हैं
देखें तो रंगा-रंग गुलों से भरे हैं बाग़
सोचें तो इस बहार में वीरानियाँ भी हैं-