आशिक़ अब कहाँ पहुँचते हैं वफ़ा के बाब तक
इश्क़ राँझे सा है महदूद बस किताब तक
कुछ यूँ राह ए इश्क़ में हैं हुए तबाह हम
बाक़ी आँखों में नहीं रहा हैं कोई ख़्वाब तक
अब वफ़ाएँ उनकी होंगी रक़ीब के लिए
इस खबर को कोई पहुँचा दे दिल-ए-बे ताब तक
भूले से भी जो वो हाल मेरा पूछ लें कभी
तो हो जाए खत्म सब दर्द इज़्तिराब तक
उनसे बिछड़े हो गया है ज़माना अब हमें
सूख अब चुके हैं उनके दिए गुलाब तक।।
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