जब भी देखूँ तुमको ये नज़रें,
तुम्हारी आँखो पे ही ठहर जाती हैं।
ये काली झील सी गहरी आँखें
अपनी और मुझे खींचे जाती हैं।
जाने क्या छुपाए बैठी हो इनमें,
तुम्हारी आँखें मुझसे तो ये,
एक पल में ही बहुत कुछ कह जाती हैं।
क्या कभी किसी ने,
करी हैं कोशिश इनको पढ़ने की?
मुझे लगता अगर पढ़ने बैठो तो,
लगता पढ़ने में सारी उमर गुजार दी जाती हैं।
क्या कभी समझा हैं किसी ने दर्द इनका?
पर मुझे लगता हैं,
तन्हाई में इनसे दरिया बहाई जाती हैं।
मैं चाहता हूँ झील सी आँखो में,
डुबकी लगा के इनकी गहराई नाप लूँ।
कभी देखूँ फिर से इनको तो इनका दर्द भाँप लूँ।
जब ये आँखें देखे मुझको मैं इनपे ही अपनी नज़र थाम लूँ।
मैं देखता हूँ जब भी तुमको,
ये नज़रें तुम्हारी आँखो पे ही ठहर जाती हैं।
-