Harshvardhan Singh Bhati   (Harsh)
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Joined 3 June 2018


Joined 3 June 2018
17 FEB 2022 AT 22:27

ईजल पर बैठे कैनवास पर
रंग आपस में बतियाते रहे
फिर कभी शब्दों के आंगन में
अर्थों के साथ खेलते रहे
यह तो ख्वाब थे जो
मेरे ख्यालों में उतरते रहे
और तेरे होने का
प्रमाण देते रहे...
आसमान भी एक छत होती है
जिसपर घर की दीवारें
नहीं चढ़ाई जा सकती,
इसके नीचे खुद होना
मुश्किल हो जाता है
तेरा होना मेरे लिए फ़क़त
एक छत का होना है
जहां तेरे रंग और
मेरे शब्द साथ रहते हैं
जो मिल कर भी मिलना
बाकी हो वह खोज हो जाओ
मैं अमृता तुम इमरोज़ हो जाओ...

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14 FEB 2020 AT 23:26

दिल में उमड़ता भादो
आंखों में सावन क्यूं है
यह चेहरे पर अश्विन-कार्तिक
हमारी बातों में फागन क्यूं है
जीवन वैशाख, आषाढ़, जेठ
पौष की सिहरन क्यूं है

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30 SEP 2019 AT 11:23

मेरे उधड़ रहे बदन को
तुम्हारी नुकीली आंखें
सी देती हैं
इस सिलाई में
बहुत कुछ वह भी
टांक दिया जाता है
जिसे अभी और
धूप सेंकनी थी
हवा महसूस करनी थी
और हां तुम्हारे सांसों
की गर्माहट को दिल तक
उतारना था...
खैर अब सिल ही चुकी हूं
तो किसी दिन फिर
उधड़ भी जाऊंगी....

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18 JAN 2022 AT 6:08

तुम मैय्या के काजर कृष्णन
भौंरों बन सब को सताए
तुम तो भय घोर कलूटे
सखियां सबहिं गोर सुहाय
जो सखी गोर हो न सकी
बोलो, वो किस रीत रिझाय...

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2 SEP 2021 AT 23:19

यह एक सच है कि
हर धर्म में
किसी न किसी किताब
की मान्यता ज़रूर है
फिर यह भी एक सच है कि
उस धर्म के
लोगों को चलाने वाले
अनपढ़-मग़रूर हैं...

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17 AUG 2021 AT 23:31

नियम के नाम पर
ईश्वर को गुनाहगार
बनाया जाता है
औरत की आबरू,
बच्चों की तालीम
और इंसानियत का
सपना बार बार
मिटाया जाता है...

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14 JUL 2021 AT 6:26

Teachers of maths
Like an old friend
Always help you to
Unite with your X
Turning half of the
Population some
Ghalib some Gulzar...

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15 JUN 2021 AT 9:28

जो बैरागी था
वियोग में
विनाशी बन बैठा
जो सांसारिक था
विनाश में
बैरागी बन बैठा
(शिव-कृष्ण)

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15 JUN 2021 AT 8:09

मौसम आने पर
आम भी
खास हो जाता है...

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8 JUN 2021 AT 16:15

वैसे ही जैसे एक
ब्लैक विडो मकड़ी
संभोग के बाद
अपने ही साथी को
खा जाती है और
उसके ही बच्चों को
जन्म देकर उसका
परिवार बढ़ा देती है...

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