Harshita Rai   (©हर्षिता)
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Joined 9 May 2021


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19 DEC 2022 AT 10:35


मैं चुन सकती थी मौन
परंतु
मैंने सदैव चुना संवाद

//रचना कैप्शन में...//

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19 DEC 2022 AT 9:20

न जाने कहां खो गए हैं,
मेरी पोटली से
सारे रंग..
कैनवास न जाने कैसे
कोरा हो गया है..

तितलियां फूल पक्षी आकाश
लुप्त हो गए हैं?
या पारदर्शी हो गए हैं!

खंडित हो गया है
इंद्रधनुष,
या सूरज ने त्याग दिया है
श्वेत प्रकाश..
क्यों छा गया है
अंधेरा सभी दिशाओं में..

फिर भी,
मैंने लिखा प्रेम!
काली स्याही से..
सफेद कागज पर प्रेम ही बहा..
प्रेम ही रहा...

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17 DEC 2022 AT 18:22

ना जाने कितने आज
खर्च कर दिए
मैंने यूं ही,
उस एक कल की प्रतीक्षा में...

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14 DEC 2022 AT 0:28


टूट पड़ते हैं
सितारों से भरे
ना जाने कितने आसमां
इस बात पर

आंखो की देहरी पर
ठिठकी
हर रात जब कुर्बान होती है
इक ख़्वाब पर

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13 DEC 2022 AT 21:20

शहर से बाहर निकलती सड़कें
ढोती हैं सपने..
शहर छूट जाता है पीछे
अधूरा...
चीख नहीं सकता,
बिना शिकायत निकाल कर रख देता है
अपना कोई हिस्सा
न जाने कितनी ख़्वाबों की हथेलियों पर...

न कोई लौट पाता है
उन प्रतीक्षारत सड़कों पर वापस,
न ही लौटा पाता है
उसका वो हिस्सा,
जो आज भी उम्मीद में हैं
उन सपनों को चमकता देखने की...

अतीत में फंसा एक शहर
समय में ठहरा हुआ,
हर बार थोड़ा सा और
बूढ़ा हुआ जान पड़ता है...

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13 DEC 2022 AT 20:39

उसे मालूम था
लग जानी थी पूरी उम्र
उस शहर की सड़कों पर
बिखरे इश्क़ को समेटने में

किन्हीं दीवारों के पीछे
कैद होकर रह गया था
घने कोहरे में लिपटा
प्रतीक्षारत मन

उसने चुना
जीवन से निकल जाना
मन से निकाले जाने से पहले

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28 OCT 2022 AT 18:56

आख़िर कब तक भाग सकोगे?
दुनिया की परिक्रमा कर
वापस आना ही होगा तुम्हें..
ख़ुद से कोई कहां तक
भाग सका है!
शून्य के भंवर की तरंगें
तुम्हें खींच लेंगी ख़ुद में..
कैसे बच पाओगे
अपनी ही नज़रों से..
समय को,
भला कौन पीछे छोड़ सका है..
जहां से तुमने शुरू किया था
ठीक उसी जगह करना होगा खत्म,
मंजिल बिलकुल वहीं है
जहां तुमने उसे रख छोड़ा था..!!

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28 OCT 2022 AT 14:00

नहीं जानना है मुझे तुम्हें..
क्योंकि तुम्हें ज़्यादा जानते जाना
दूर करता जायेगा मुझे तुमसे..
तुम्हें पूरी तरह जान लेना
आख़िरी दिन होगा
तुम्हारे वजूद का!
क्योंकि,
उस दिन मैंने तुम्हें
माफ़ कर दिया होगा...!!

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27 OCT 2022 AT 15:10

रंग...!!
//कृपया कैप्शन में पढ़ें//

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27 OCT 2022 AT 10:56

डर का कारोबार
हैं जकड़े बेड़ियां हज़ार
उसको खो देने का डर ही
सींचे उसका प्यार
सत्कर्मों का ध्येय नहीं
प्रेरक है ना हो हार
ईश प्रेम से बढ़कर है
यह ईश कोप का भार
भय के ताने बाने हैं
ये कठपुतली के तार
ऊपर बैठा तू क्या सोचे
देख तेरा संसार
हर मन में फल फूल रहा जो
डर का कारोबार

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