Harshita Panchariya   (व्योमांजलि)
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Joined 15 June 2017


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Joined 15 June 2017
17 JUL 2018 AT 19:21

फ़क़त, ज़हर जिनके कानो में है,
ऐसे वैसो की जगह पीक़दानो में है

ज़रा सा हुनर, क्या बक्शा ख़ुदा ने,
भाव ग़ुरूर का अब आसमानो में है

ग़लीच बनी सोच, लिबासों में इस क़दर,
क्या, आबरू लिबास की दुकानो में है ?

जागीर नहीं ये मुल्क, किसी परिवार का,
फिर क्यूँ सियासत, यहाँ खानदानो में है ?

सकून मिल जाता, लोगों की मोहब्बत से,
यूँ महफ़िल लूटने का ख़िताब,नादानो में है

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19 JUN 2018 AT 10:25


16 MAY 2018 AT 19:33

पलट दे रूख आँधी का दुआ माँ की,
किनारा लगे कश्ती का दुआ माँ की

रोशन हो चिराग़ अंधेरे के दम पर,
साथ बना रहे बाती का दुआ माँ की

लौटते नहीं फ़क़ीर हाथ ख़ाली जहाँ,
वास ना हो कंगाली का दुआ माँ की

ताउम्र सम्भाले गुलिस्ताँ गुलाबों के,
ना निकले लहू माली का दुआ माँ की

ना तेरी, ना मेरी, इबादत है सबकी,
शब्द ना बने गाली का दुआ माँ की

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14 MAY 2018 AT 19:39

माँ की परवरिश तेरे क़िस्से में रहती है
पूजा के लिए मोहब्बत परदे में रहती है

बदल जाए ज़माना, तुझे फ़र्क़ नहीं पड़ता,
सुना है, ये शराफ़त तेरे हिस्से में रहती है

यूँ तो लाखों तारे है,यहाँ रोशनी के लिए,
पर तेरे जैसी चमक ध्रुव तारे में रहती है

रूह को सकूँ दे, ऐसे जज़्बात सुना दे,
फ़क़ीरा तेरी आवाज़ ज़माने में रहती है

जब तुझे पढ़ती हूँ, क़बीरा याद आता है,
ऐसी फ़क़ीरी ख़ुदा के दीवाने में रहती है

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12 MAY 2018 AT 20:09

चंद्र बिंदु “माँ” का ज़रा “सास” में लगा दीजिए,
वृद्धाश्रमो का “साँस” लेना मुश्किल हो जाएगा

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11 MAY 2018 AT 20:20




“अन्दाज़ ए बयाँ” मेरा तल्खियत भरा है,
छोड़ो यारों, खामखां तबियत ख़फ़ा है .....

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9 MAY 2018 AT 19:40

इन कलियों के लिए ढाल होना था,
गुनाहगारो के लिए काल होना था

कट रही है ज़िंदगी फक्काशी में,
उसे जलाने के लिए माल होना था

मिटायी भूख, मेरी तो रोटियों ने,
फिर क्यूँ चाँदी का थाल होना था

तुझे चाँद का महबूब होना था,
मुझे मेरी माँ का लाल होना था

उलझ गए रिश्ते सीधी राह में,
मुझे मकड़ का जाल होना था

खाते ही उगल दे अच्छे अच्छे,
मुझे निवाले का बाल होना था

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7 MAY 2018 AT 19:55




आसान नहीं पहाड़ों सा,ऊँचा उठकर अर्श को चूमना,
हुनर मिट्टी को मिट्टी से लिपटे रहने का आता नहीं....

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5 MAY 2018 AT 19:37


तू नेक़ी भी दरिया में डाल कर रखता है,
तो क्यूँ मेरा इश्क़ इस्तेमाल कर रखता है

कोशिश करती हूँ मैं, बात करने की उससे,
पर वह तो ग़लतफ़हमी पाल कर रखता है,

गँवाने को बैठे है ,अपनी सल्तनत हम तो,
फिर क्यूँ हर प्यादा संभाल कर रखता है,

कहता है अब परवाह नहीं है मुझे तेरी,
फ़िक्र भरी आवाज़ में कमाल कर रखता है,

सुना है जला दी है तमाम निशानियाँ मेरी,
फिर क्यूँ मेरी “राख” संभाल कर रखता है



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3 MAY 2018 AT 20:24

Saurabharshita

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