सुनो... मेरी जिंदगी के अधिकांश पलों में सबसे खूबसूरत रहा तुम्हारा मिलना! तुमसे मिलने पर मैंने जाना माँ की गोद का सुकून और बाबा की आखों का बेबाक भरोसा.. मिल सकता हैं कहीं और भी.... किसी के फकत़ गले लगाकर माथा चूमने पर मिट सकती है तमाम शिकन्दे... फिका पड़ सकता हैं चांद... और सिमट सकती हैं किसी इक मुस्कान में मेरी दुनिया। तुममें पाया मैंने इक चंचल शिशु जिसने बचाऐं रक्खा मेरा बचपना... और इक परिपक्व वयक्तित्व जिसने सदैव चाहा मेरा हित.... ! सुनो! तुम मेरे साथी हो... और सारथी भी... तुमसे बिछड़ना उस भयावह मंजर की तरह हैं जिसमें मात्र शुन्य रह जाएगा हमारा बसाया संसार।
उस रोज जो हुआ कोई अपराध नहीं था वो शाम हंसी थी कमबख्त़ हमें कुछ याद नहीं था, तेरी उंगलियाँ मेरी कलाई पर जो हथकड़ी बनी... इससे पहले यूँ कैद करने का कोई रिवाज़ नहीं था, तेरे लबों से मेरे लबों पर कुछ लव्ज़ जो फिसले, बरसों तलक ज़हन में रहा वो एहसास वहीं था