अफ़सानों का समा लेके आया था,
बनाने को हक़ीक़त।
हक़ीक़त में ,
अफ़सानो का जनाजा निकाल दिया।
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शांत, पर दिल से नही
अलग मिजाज
1998 का मॉडल
महाकाल की नगरी - उज्जैन
बातें कम सी होने लगी है,
शायद नूर खत्म होने को है अपना ।
कुदरत भी अपनी शब पर आने लगी है,
शायद अभिमान खत्म होने को है सबका ।-
समय की पाबंदी में बंधना चाहता,
हौसलों को उड़ाना चाहता ।
अपने आप को खुद से बचाना चाहता ,
अपने कर्मो न बिगाड़ना चाहता ।
चाहता मै सब कुछ हासिल करना ,
हासिल आलस्य न करना चाहता ।
सुविधाओं की छांव में ,
सारी सुविधाएं पाना चाहता।-
फासले तुमने ले लिए है ,
फैसला लेना अभी बाकी है।
रुको,
अभी से ना घबराओ,
बदला लेना अभी बाकी है।
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मासूमियत हाय !
क्या तारीफ करू मै,
इस काबिल बनाया ही नही मुझे।
हाँ खुशनसीब तो ज़रूर हूँ,
जो उस मासूमियत का हक़दार बनाया मुझे।-
जीवन का अर्थ समझ आने लगा है।
कुछ अपने वजूद का अहसास ,
आज तुम्हारे आने से लगा है ।
यू तो खुश रहते थे हम मगर ,
अब खुशी का नाम समझ में आने लगा है।-
अल्फ़ाज़ नही अब बयां करने को मेरे दर्द,
ऐ ज़िन्दगी तेरे खाली पन्नो से लगता अब डर।
हलक पर अटकी मेरी जान ,
मेजबान भी कहता है मत जी तू अब मर।-
Humhara mobile he chhota aur upr se chl rahi exam,
Ak usi ne bacha ke rakha h sabhi moh maya se,
Varna hum bhi dene chle the pochinki me apni jaan .-