रज़ा की बात का इक़रार क्या करूँ?
उसकी दस्तरस में ख़ुद मैं मुकर्रर हूँ।
-हर्षित आनन्द-
ज़िन्दगी जीने की सारी ख्वाईश हो तुम,
हो मेरी हर आस, तुम्ही आख़िरी सांस।
-हर्षित आनन्द-
तुझसे ही है इश्क़, तेरी ही है खुमारी,
है दिल को ये मेरे भायी तेरी ही यारी!
-हर्षित आनन्द-
तेरी गलियों की डगर तो यूँ थी मुश्किल,
रास्तें आसान तो क्या ही ये इश्क़ हासिल,
पर तू जो मिली तो पूरी हुई मेरी मंज़िल,
तू हमसफ़र बनी और तू ही मेरी साहिल।
-हर्षित आनन्द-
तू जो मुझे यूँ मिला, लगे सारा जग खिला,
तेरे इश्क़ से ये आरज़ू, जैसे जन्नत है मिला।
-हर्षित आनन्द-
तुम्हारे ख्यालों में ज़िन्दगी बसर कर लूँ,
तेरा इश्क़ रूह को फ़लक-ए-दीदार है।
-हर्षित आनन्द-
नींद से जागा हुआ वो नूरानी चेहरा,
एक अलग ही कहानी बयां करती है,
दीदार उस चेहरे का कर हर दफा यूँ,
ये दिल में उसकी तस्वीर निहारती है।
-हर्षित आनन्द-
कुछ कहानियाँ अधूरी सी लगती है,
जैसे मेरी जिंदगी तेरे इश्क़ के बिना।
-हर्षित आनन्द-
जितना पकरना चाहो समय को,
मुठ्ठी से रेत जैसी निकल जाती है।
-हर्षित आनन्द-
तेरी ख़ामोशी अब ज्यादा खलती है,
जिन लफ़्ज़ों से ज़िन्दगी गुलज़ार थी।
-हर्षित आनन्द-