Harsha Singh  
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अल्फ़ाज़ नहीं मैं जज़्बात लिखती हूँ ।
Joined 4 February 2017


अल्फ़ाज़ नहीं मैं जज़्बात लिखती हूँ ।
Joined 4 February 2017
1 NOV 2018 AT 1:39

एक अश़्क चुभ रहा है आंखों में
कहो तो तुम्हारी हथेली पर बहा दूं?

एक बात छुप रही है लफ़्ज़ों में
कहो तो तुम्हारे होंठों पर सजा दूं?

कुछ ख़याल हैं जो तन्हा हैं बहुत
कहो तो उन्हें आज तुमसे मिलवा दूं?

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4 OCT 2018 AT 23:51


24 SEP 2018 AT 0:35


2 SEP 2018 AT 4:24

अबके कोई सफ़ाई मत देना.
मैंने प्यार को एक तरफ़ा मान लिया है.

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15 JUL 2018 AT 0:09


13 JUL 2018 AT 0:27


7 JUL 2018 AT 0:11


10 JUN 2018 AT 2:18

ये कैसी मायूसी है बारिश की बूंदों में,
लगता है बादलों की ओट में आज चाँद रो रहा है़.

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9 JUN 2018 AT 16:49

अपनी नज़्मों में तेरा नाम कहाँ लिया था मैंने.
वो तो तूने ही गड़बड़ कर दी.
जिस पल मेरी आँखें नम व महफ़िल मौन हुई.
तूने तालियाँ बजाई और वाह वाह कर दी.

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5 JUN 2018 AT 15:53

इन साँसों में ये तपन कैसी है?
कंपन होठों पर कहाँ से आई?

इन नैनों में ये धुआँ कैसा है?
अश्कों में कालिख़ कहाँ से आई?

हाँ कुछ तो यहाँ ख़ूब जला है,
लेकिन कोई आवाज़ क्यों नहीं आई?

वो आग लगाने वाला कौन था?
वो आग किसने बुझाई?

किसी के झूठ झुलसा गए तुम्हें?
या तुम्हारी अपनी सच्चाई?

आख़िर ये हाल किया किसने है?
तन्हाई बेवफाई या जुदाई?





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