Harsh Vardhan  
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Joined 8 November 2017


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30 MAR 2021 AT 8:38

मुश्किलों से भरी है ये ज़िन्दगी , गायब हो चले फुर्सत के पल है ,
"आज" की खुशियों से ज़्यादा, ख्यालों में आने वाला कल है
फिर भी कुछ देर के लिए ज़रा ठहर कर तो देखो
दो क्षण मुस्कुरा कर कभी एक बच्चा बन कर देखो ।

ये पैसों की मारामार में , बढ़ती प्रतियोगिता की लंबी कतार में
कामयाबी की होड़ में , आगे बढ़ने की दौड़ में
कुछ देर अपनों के संग रहकर तो देखो
कभी एक बच्चा बन कर देखो ।

चलो फिर से पुराने गीत गुनगुनाए जाए , चलो फिर ज़िन्दगी की बगिया में सुन्दर फूल खिलाए जाए ,
चलो फिर कोई पुराना खेल खेला जाए , चलो फिर पुराने किस्सों को दिल से निकाला जाए
यारों के साथ एक शाम में खुद को मगन कर के तो देखो
कभी एक बच्चा बन कर तो देखो ।

चिंताओं के शहर में कुछ देर अजनबी बना जाए ,
थोड़ा सा वक्त अब खुद को दिया जाए
चलो धरती पर जन्नत देखी जाए
बस मां की गोद में एक बार सर रख कर तो देखो
कभी एक बच्चा बन कर तो देखो ..........

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4 MAR 2021 AT 15:46

चलो भारत देखे एक कवि की नज़र से,
इस इन्द्रधनुष को देखे एक कवि की नज़र से...

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9 JAN 2021 AT 20:46

अंधेरी राहों पे हौसले की लौ को न भूजने देना ,
रुक जाना किसी योद्धा का अंदाज़ नहीं होता ,
चमक फीकी ना पड़ने देना ,
जज्बा किसी कीमत का मोहताज नहीं होता ।

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15 OCT 2020 AT 8:41

मुठ्ठी भर ख्वाबों को दिल के संदूक में छिपा रखा है ,
हमने खुद को खुद से ही जुदा रखा है ,
हमारी जिस मुस्कान के लोग कभी दीवाने थे
आज उस मुस्कान को कहीं गुमनामी में दबा रखा है ,
ज़िन्दगी जीने का ढंग शायद भूल चुके है
दुनियादारी के बोझ को न जाने क्यों सर पे सजा रखा है ।

खुश का भाव मुख पे है स्वभाव भी बड़ा सुहाना है
पर लोग क्या जाने ये तो सिर्फ जीने का एक बहाना है ,
मंज़िल का अंदाज़ा नहीं मार्ग में छाया कोहरा
अतरंगी बाज़ी चल रहा अपनी किस्मत का मोहरा ,
न जाने क्या रंज है ना जाने क्या मलाल है
किस्मत से कोई शिकायत नहीं शायद खुद से कई सवाल है ?


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7 OCT 2020 AT 16:48

गमों के नगमे हम भी समझते है
आंसूओं से हम जुदा थोड़ी है
दर्द हमें भी होता बहुत है
हम भी इंसान है कोई खुदा थोड़ी है

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2 OCT 2020 AT 16:04

आज सुबह अख़बार पढ़ा
फिर से इंसाफ का अंतिम संस्कार हुआ
कलयुग में फिर किसी द्रौपदी पर अत्याचार हुआ
क्या गलती थी उस बेचारी की ,ये शायद हम नहीं जानते
सच को सामने देख कर भी उसे हकीकत नहीं मानते ,
तब एक दू:शाशन था आज उस जैसे अनेक मिल जाएंगे,
तब महाभारत हुआ पर आज हम सिर्फ मोमबत्ती जला सब भूल जाएंगे ।
नेता आएंगे ढोंग करेंगे ,लोग भी अपनी संवेदना दिखाएंगे
क्षणभर के आक्रोश के बाद वापस सब भूल जाएंगे ,
भारत मां की बेटियां आखिर कब तक यूंही डरती रहेंगी ,
अपनी रक्षा के लिए कब तक दुनिया से लड़ती रहेंगी
अब महाकाली की भांति शस्त्र हाथ में थाम लो ,
सरकारी पुतलों के भरोसे मत रहो स्वयं अपने शौर्य का नाम लो ।
संकल्प सबका एक है सपनों का भारत बनाएंगे
निर्भया के बलिदान को कभी न हम भूलाएंगे
निडर हो आगे बढ़ सके देश की बेटियां
और अत्याचारियों को यमराज की दिशा दिखाएंगे ।।


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8 SEP 2020 AT 7:21

मै जिस गीत की धुन हूं, उसका ताल तुम हो
मै आकाश सा नील हूं, प्रेमसागर सा लाल तुम हो
मै बिखरी मोतियों सा, सुंदर नगों का हार तुम हो
मै कथा एक अनसुलझी, उस कथा का सार तुम हो
मै व्याकुल घाट बनारस का ,गंगा की निर्मल धार तुम हो
दिल को जीत ले हर उसे ज़र्रे- ज़र्रे का दीदार तुम हो
मै एक बिखरी कविता सा , उसका अलंकार तुम हो
मै खोए हुए सुर जैसा , मधुर सितार की झंकार तुम हो
मै वीरान धरा सा अधीर ,सावन की पहली फुहार तुम हो
जिस इश्क़ का कोई नाम नहीं , उस इश्क़ में इकरार तुम हो
कहीं तो होगी तुम , प्रत्यक्ष ना सही नजर के पार तुम हो।।

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15 AUG 2020 AT 8:50

नव प्रभात के चढ़ते सूरज , चढ़ती नई जवानी है ।
बंगाली मद्रासी पीछे , पहले हिन्दुस्तानी है ।।

हम गुजराती गांधी जैसे , राम नाम के दीवाने ।
पंजाबी हम भगत सिंह से , मातृ भूमि के मस्ताने ।।

महाराष्ट्र के वीर तिलक हम , स्वतंत्रता के सेनानी ।
राजस्थानी राणा जैसे , उत्तर भारत के बलिदानी ।।

छत्रसाल के वीर शिवा की , तलवारों के पानी है ।
ना पंजाबी ना गुजराती , पहले हिन्दुस्तानी है ।।

रक्त मुझे देकर आज़ादी लो, नारा यह बंगाल का ।
आजाद हिन्द का वह सेनापति , रक्षक भारत भाल का ।।

मनु की हम संतान नदी की , हम अवरुद्ध जवानी है ।
ना हम सिंधी ना आसामी , पहले हिन्दुस्तानी है ।।

इस मिट्टी का बंदन करते , गुरु गोविंद पंजाब के ।
हंसते फांसी पर चढ़ जाते , बिस्मिल हम दोआब के ।।

रामेश्वर का नीर चढ़ाते हैं, हम बद्रीनाथ को ।
पुरी द्वारका आश्रय देती , कभी जगत के नाथ को।।

नाना जी है हम बिठूर के , हम झांसी की रानी है ।
नहीं निवासी किसी प्रांत के , हम सच्चे हिंदुस्तानी है ।।

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5 AUG 2020 AT 10:53

सरयू तीर सब जन करे प्रणाम । आ रहे है राज राजेश्वर राम।
हुई अवधपुरी दुल्हन सी प्यारी । हो चली है उत्सव की तैयारी।
बरस बीत गए कलयुगी वन में । आयी बहार अवध के उपवन में ।
लौट आया है आंखों का तारा । यही कहती मां सरजू की धारा ।
चमक उठी राम नाम के दीपों की ज्योति । जैसे स्वर्ण मला को अलंकृत करते मोती ।
चहुदिश फैला एक ही रस एक ही नाम । पूरी अयोध्या दिल से बोले जय श्री राम ।

राम नाम ही आरंभ है , राम नाम है अंत
राम नाम राग राग बसे , राम नाम है अनंत ।

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18 JUL 2020 AT 18:39

The sky that was once lit with stars ,
Has lost its shine
Is it the ending of the beautiful night ?
Or just the beginning of a new day
with sunshine clear and bright ...
As a traveller I cherish the path ,
Which sometimes may not finish well ,
The endings may not always be fruitful
But one has to keep moving ,
It is the journey not the destination which brings glory to us ,
With time one may become a part of oblivion ,
At such time pain engulfs us ,
Sorrow surrounds us and anxiety gives its kind company ,
In such time just remember
That you are like the sun , which will surely shine again ......


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