harSH ✒   (SH Kumar)
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Joined 15 June 2018


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24 JUN AT 0:33

तुम्हारी उंगलियों ने जब एक मुरझाए फूल को छुआ तो वह खिल उठा 🐚
तुम्हारी अनामिका ऊंगली से होकर गुजरे अहसास ने उसमें सुगंध भर दी। 🍁
वह अब पूरे फज़ा से आलूदगी(प्रदूषण) को मिटाकर उसे सुगंधित कर सकता है।

मानसून की बारिश जब जमीं पर गिरकर मिट्टी में मिलती होगी तब उसकी ख़ुशबू से इंद्रधनुष बनता होगा।

तुम्हारी खूबसूरत आँखों का रंग 'VIBGYOR' से सीधा मुकाबला करता है।

तुम्हारी कत्थई आँखें ...
मेरी आत्मा का रंग अब उनसे मेल खाने लगा है।
June24, 2k25

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24 JUN 2023 AT 19:33

रार है , इकरार है , इजहार है
तुम्हारे माथे को चूमकर कहता हूं
कि तुमसे प्यार है ।।

आधी रात और बात करने को मन बैचेन होता
तुम सामने होते तो गले लगकर,खुशबू चुरा लेता ।।
24june2k23

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5 JUN 2023 AT 7:58

कल मिले थे , कल मिलेंगे
आज नही तो क्या, कल अवश्य साथ चलेंगे
आज करेंगे बेहतर तो ही, कल अच्छे बनेंगे
हम बोएंगे बबूल तो, कहाँ से आम मिलेंगे
मोहब्बत से सींचोगे तो, जरूर प्रसून खिलेंगे
कल मिले थे , हम जरूर मिलेंगे ।।

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20 MAY 2023 AT 22:19

बदल जाते हैं नियम 2
बदल जाते हैं कायदे 0
जब बदलता है समय 2
तो बदल जाते है मायने 3
'श' से 'प' तक के सफर में May
गुजर गए हैं कई रास्ते... 20

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9 OCT 2022 AT 11:15

जब मैं खिड़की से बाहर देखता हूँ
बारिश में उछलता बचपन देखता हूँ ,
जमीं पर बनते बुलबुले देखता हूँ
खेतों में लहलहाती फसल देखता हूँ ,
छज्जे पर जोड़ा कबूतर देखता हूँ
मुस्कराते हुए गुलाब देखता हूँ ,
चार छत दूर हरी चुनरी देखता हूँ
काली घटाओं में बिजुरी देखता हूँ ,
दूर जाती ट्रेन की सीटी का संगीत
उसके होठों से निकले गीत सोचता हूँ ,
मैं देखता हूँ जब खिड़की से बाहर
तो काल का यही भूत देखता हूंँ ,
न अब कूदता बचपन देखता हूँ
न सीटी न कोई गीत सोचता हूँ , S
फसलों पर गिरी बिजली देखता हूँ H
बुलबुलों को फूटते देखता हूँ ,
छत पर उसके हरा रंग देखता हूँ K
आसमाँ यह जाफरानी देखता हूँ , U
अब खिड़की से बाहर देखता हूँ M
बारिश में भींगते समुदाय देखता हूँ, A
मैं विलाप करते बादल देखता हूँ R
बिखरे गुलाब की पँखुरी देखता हूँ ,
कबूतर का वनवास देखता हूँ
छज्जे से गिरा शोणित देखता हूँ ,
चुनरी में लिपटा क्रंदन देखता हूँ
मैं छत पर फैला रंग लाल देखता हूँ ,
जंजीरों में बँधा समाज देखता हूँ
मैं तो खुद को आजाद देखता हूँ ।।
✍️ 9 oct 022 (sunday) 10:23 am
✍️ SH Kumar

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18 SEP 2022 AT 16:49

कल मिले थे , कल मिलेंगे
आज नही तो क्या, कल अवश्य साथ चलेंगे
आज करेंगे बेहतर तो ही, कल अच्छे बनेंगे
हम बोएंगे बबूल तो, कहां से आम मिलेंगे
मोहब्बत से सींचोगे तो, जरूर प्रसून खिलेंगे
कल मिले थे , हम जरूर मिलेंगे
18 sep 022

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6 MAY 2022 AT 10:40

ऐसे ही होता है विश्वास
कभी बनता कभी टूटता
कभी अमरता कभी मिटता,
जहाँ निश्चंत होते हैं आप
वहीं टूट जाता है विश्वास ,
कहीं , कभी गैर होकर भी
जगा जाते हैं विश्वास ,
कहीं किसी सागर में
डूब जाती है आस
जब कोई मल्लाह
कर देता है घात विश्वास ,
चोट पर मरहम सा है
कभी मन में चोट देता है
दिल से दिल का है सफर
आंखों से धोखा देता है ,
किसी के जीवन की इकलौती आस
मत खेलो उसके साथ
नहीं निभा सकते गर
तो मत जीतो उसका विश्वास ,
बस ऐसा ही होता है विश्वास
कहीं सहजता कहीं कठिनता
कभी मरता कभी अमरता ...

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29 MAR 2022 AT 19:22

मन की ख्वाहिसों का दिन है आज
पूरा करने को उन्हें आज साथ है चाँद ,
आज कमरा उसकी हंसी से है गुलजार
अंधेरा कहीं भाग गया है होकर बेजार ,
मुस्कराते हुए वो जब मुझमें घुल गया है
काला स्याह 'जुगनू' से डर गया है ,
रंगों में रंगे हैं पूरी दुनिया के ख्वाब
उस गर्माहट में ठंडी ओस सा है हिसाब ,
ट्रेन में हूं मैं हर कोई सफर में है
लेकिन साथ जो चल रहा है वो है चांद
मेरा चांद ...
29 March 22

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16 MAR 2022 AT 7:42

नदी के बहाव के साथ बहते चले गए
हम मोहब्बत के रंग में रंगते चले गए



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1 JAN 2022 AT 20:47

यह समाज धर्म, जातियों में बट रहा है
इंसान यूं इंसान से ही क्रोध कर रहा है

हम चढ़ाते रहे फूल,नारियल मंदिरों में
कोई भूखा सीढ़ीयों पर भूख से जल रहा है

दरगाह पर चादरों की परत लगी है
कोई बूढ़ा झोपड़ी में ठंड से मर रहा है ।।

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