मैं कुछ नया सीख जाऊँ या तुम्हें सीखा जाऊँ,
कुछ तो नया होगा इस दफ़ा
मैं वो शायर नहीं जो बेवजह अपनी कहानी सुना जाऊँ।-
UPSC Aspirant
Bday - 3rd July
क्षितिज से पलकों में यूँ इश्क़ छुपाए,
नयनो को यूँ हल्के से झुकाए,
इश्क़ के मयखाने में बैठे है आमने - सामने,
जरा उनसे कहो इश्क़ ना दिखाना ना सही आँखों से चश्मा तो हटाए।-
आसमा छूने तलक से भी वाकिफ़ हूँ जनाब मैं, अपनी कलम से इस ज़माने में,
तुम कहाँ मुझे सिर्फ़ शेर - ओ - शायरी में गैरों की तरह एक ख़्वाब लिखते हो ।
कह दो लकीरों से, लिखी होगी तक़दीर अलग - अलग बेशक ज़मानेभर की तुमने,
जब लिखू एक शायरी से सारे जहां को, ख़ुदा भी कहे हर्ष क्या कमाल लिखते हो।-
शराब के मयखाने में बैठे ज़माना लिखते हो,
कभी तुम ज़माने में क्यू नहीं आते ?
सुना है बड़ा मोहब्बत और धोखा लिख रहे हो आजकल,
अरे! इससे बेहतर है प्रकृति, तुम हर्ष की तरह उसे शब्दों से सजाना क्यू नहीं चाहते?-
वक्त है जब मैं उससे दूर हो रहा हूँ,
कुछ ख़्वाबों में गैरों के, कुछ खुद में मगरूर हो रहा हूँ।
मिले वो आज भी नहीं, दर्द दिखता है आँखों में वही,
सिर्फ बदला इतना है कि आज आसुओं के चलते मैं मशहूर हो रहा हूँ।-
समन्दरो के शहर से जाना है दिखावे के रिश्तों का हर घर फूंकते-फूंकते ,
साहब अब आँखों में आग ही नहीं, दिल भी जलाना लाज़मी है।-
ख्वाईश नीलम कर लिखी है जिंदगी की हकीक़त कई,
ज़माने भर की जुबा पे है हर्ष,
पर मोहब्बत ना मिले कहीं
जिन्दगी बिता के देखे हम शायरों सी कोई ।-
कर मेहनत मैंने खुद को अपना खुदा बना लिया,
यूँ तो बड़ा ऊँचा था आसमाँ,
उड़े जब हम बिना पंख के,
देखा आसमाँ ने रोकने को हमे,
तारों को हमारी राह का कांटा बना दिया।
यूँ ही चलते रहे मुस्कराते हम,
मंज़िल के हर सफ़र में,
आने लगी मुश्किलें जब,
मैंने मुस्कान को बता अपना दोस्त,
जिंदगी के दुःखों को गैर बना दिया।-
कलम भी टूट गई,मोहब्बत भी रूठ गई,
जाता मयखाने मैं तो शराब भी छूट गई।
जिंदगी जब लगने लगी बेहद आसान सी,
तो मालूम हुआ जवानी जीने की उमर बीत गई।
उम्मीद थी हाथों की लकीरें निभा जाएँगी साथ हर्ष,
हथेली से उँगलियों तक गई नजरे,तो किस्मत भी रूठ गई।।-
खुशामद क्या करू मैं अपनी,
हमारे फ़क़त तख़ल्लुस से शरीफों के शहर तलक ढह जाएंगे।
नहीं करनी हमे वक़ालत हमारी,
हमारे चाहने वाले तलफ़्फुज़ मे ख़ुदा को अपना रकी़ब तलक कह जाएंगे।।-