तू किसी और ही दुनिया में मिली थी मुझसे तू किसी और ही मौसम की महक लाई थी डर रहा था कि कहीं ज़ख़्म न भर जाएँ मेरे और तू मुट्ठियाँ भर-भर के नमक लाई थी Tehzeeb Hafi
मैने सोचा था तुम्हे फोन करूँगा एक दिन पूछना था कि तबीयत तुम्हारी कैसी है ये नई वाली मोहब्बत तुम्हारी कैसी है रात को जागते रहते हो कि सो जाते हो इक नए खाब की आगोश में खो जाते हो अब भी कॉन्टैक्ट में है नाम की मिटा डाला तोहफे रखें हैं अभी या उन्हें भी जला डाला दिन में सौ बार मुझे फोन किया करते थे फोन उठने में जो देरी हो लड़ा करते थे चैट ईमो पे दबे पांव चले आती थी बात ही बात में ये रात गुज़र जाती थी अब तो टिक भी यहां रंगीन तक नही होता कोई मैसेज भी मेरा सीन तक नही होता मैंने सोचा था कि तुम तो बड़ी पागल निकली आज एहसास हुआ तुम बड़ी डिजिटल निकली ए टी एम जैसे यहाँ हैक हो गया शायद इश्क़ मेरा भी यहाँ बैक हो गया शायद नोट बंदी का यहां जैसे फायदा ही नही आज के दौर की चाहत में ज़ायक़ा ही नही एक दूजे के लिए छल नही करने वाला प्यार अपना कभी डिजिटल नही करने वाला तुमसे मिलने का इरादा ही यहां छोड़ दिया फोन को अपने उठाया उठा के तोड़ दिया