मुद्दतों के बाद,
आज फ़िर से कुछ याद आया !
न जाने क्यों उन बातों का,
ख़त्म होने का नाम न आया !
न जाने क्यों कुछ रुका-रुका सा हूँ,
कहीं आगे चलने का ख़याल क्यों न आया !
न जाने किस तरफ मुड़ जाऊँ,
जो मंज़िल मिल जाये !
फिर भी न जाने क्यों,
किसी भी सवाल का जवाब न आया !
बीत रही थी ज़िन्दगी, बीत ही जाएगी,
पर तुम्हें क्यों आज मेरा ख्याल आया !
ग़र अब आये हो, तो क्यों आये हो ?
न ही वो दिन है न ही वो रात हैं,
अब न वो हम हैं न ही वो बात है !
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