harsh mani choudhary   (अलबेला आशिक)
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Joined 2 January 2018


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30 AUG 2020 AT 0:52

जरा सा जहर जरा सा पानी उढेल कर प्याले में,
पी गए सारा मैखाना इक ख्वाब को भूलाने में...

खिदमत करती रही चाहत तमाम रात उसकी,
बदल न सका खुद को मयकशी को पाने में...

रूठ कर यूं चली गयी सारी खुशियां मेरे दर से,
छलक कर गिरा हो जैसे पैमाना किस और के प्याले में..

दिल पे देती रही दस्तक कोठे की रौनक तमाम रात,
रुक गए कदम खुद ही जाम से जाम टकराने में..

हैरान हो कर सोच रहा हूं अब के इबादत किसी करूं,
मन्नत का हर धागा तो टूट गया एक शक्श को पाने में...

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31 DEC 2019 AT 22:56

इस साल तुम्हें पाने के लिए जितना रोया

अगले साल तुम्हें भूलाने के लिए उतना ही हसूंगा

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26 OCT 2019 AT 20:31

वो इंसान है तन्हा हो जाएगा
यूं न बीच सफर में हाथ छोड़
दिल से वो पत्थर हो जाएगा

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19 OCT 2019 AT 0:35

दिल निकाल कर दे दूं जो तुम्हें तो मान जाओगी क्या....?
ये जो पागलों सा इश्क़ है तुमसे तुम समझ पाओगी क्या...?

तस्वीरें देखता रहता हूं हर रोज चुपके से रातों में,,
जान जाओगी अगर तो ख्वाबों में बुलाओगी क्या....?

जमाने मे तो मुस्कुरा कर मिलती हो तुम हर शक्श से,,,
मैं सामने आ जाउं अगर तो नफरत हटा पाओगी क्या...?

ये जो बची खुची सी यादें जो छोड़ गई थी तुम मुझमें,
खबर कर दूं अगर तो अकेले में मिलने आओगी क्या...?

बड़ी तन्हाइयां घेरे रहती है आजकल मुझे,,,
कभी वक्त निकल कर इनमे रंग भरने आओगी क्या..?

जिस हाल में छोड़ गई थी तुम अब शायद वैसा न रहा मैं,,
तुम्हारा था कभी मैं तुम अब जमाने को बता पअोगी क्या,,

आंख मूंदकर जो भरोसा कर लेती थी तुम हर बात पर,,,
खबर मेरी मौत की मिले अब तो यकीन कर पाओगी क्या...?

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30 AUG 2019 AT 22:59

तुम फरेब लिखती हो मैं इश्क़ लिखता हूँ ,
तुम हालात लिखती हो मैं जज्बात लिखता हूँ ,
चाह कर भी कैसे हो मंजिलें हमारी एक ,
तुम जिस्म लिखती हो मैं जान लिखता हूँ..

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29 AUG 2019 AT 22:29

काश कोई लिपट जाए मुझसे इस तरह,
जैसे हवा उतरे जिस्म में सांसो की तरह..

फितूर है कुछ अजब सी तुम्हें पाने की,
बसा ले कोई मुझे भी दिल में धड़कन की तरह..

बेअदबी से गुजरूं भी तो अब किन गलियों से,
चाँद कहां निकलता है अब छत पे आसमानो की तरह..

चाहते अगर तुम तो एक होती हमारी मंजिलें,
हक़ तो माना ही नहीं मुझपर तुमने अपनों की तरह..

गुजारिश थी मगर नसीब ने कहां साथ दिया,
चले गए तुम भी मुझे छोड़कर किसी मौसम की तरह..

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28 AUG 2019 AT 22:52

मिल जाए सारी दौलत तो भी खुश रह पाओगी क्या,?
मोहोब्बत खुद से ही करके तुम सुकून पाओगी क्या.?

ये जो दिखती हो हर-रोज मुझे तुम अपने तेवर,
तुम जिसपे मरती हो वो दिखाये तो जी पाओगी क्या.?

ये मोहोब्बत भी किसी सियासत से कम तो नहीं,
फंसा दूं किसी घोटाले में तो खुद को बचा पाओगी क्या.?

सोचता हूं एहसाह करा दूं तेरी मगरूरियत का तुझे,
पर अगर मैं टूट गया तो फिर तुम संभल पाओगी क्या.?..

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24 JUN 2019 AT 13:25


सांसें मांग ले कोई आकार मुझसे तो मैं हंस कर दे दूं,,,

मगर तुम्हें पलट कर देख ले कोई तो आग लग जाती है....

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14 MAY 2019 AT 0:17

किससे साथ मांगू तेरे दर तक पहुचने को,
एहसान कहने लगेंगे यार मेरे चंद रोज गुजर जाने दो..

मायूस हो कर ज़माने से उतार रहा हूं मोहोब्बत का लिबास,
अक्श है मुझमें अब तेरा गुजर जाने को..

नाराजगी भी तो न दिखा सकता मैं ज़माने को,
कौन आएगा फिर इस फ़क़ीर को मानाने को..

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8 MAY 2019 AT 23:38

तेरे बगैर भी अब जिंदगी जीना आ गया है

लगता था कि जी न पाउँगा तेरे बगैर मगर
छोड़ा है जबसे तुमने संभलना आ गया है

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