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ये अरुणोदय ये विहंग हमें क्या ही जगाते,
विभावरी बिता दी पूरी हमने इश्क़ निभाते।
उनकी अदा, नादानी, वो हसीं बातें रूहानी,
जल जाता जमाना, हम क्या क्या बताते।
ये रूह, ये जिस्म, ये जिगर, ये दिल उफ्फ,
सब ख़ाक हो गया, हम क्या क्या बचाते।
मायूस है मयखाना, ज़हर हो चुकी मय है,
चढ़ती ही नहीं ये, जब तलक वो न आते।
इतनी भी क्या नफ़रत पाली है तुमने मुझसे,
की आईने से भी हो तुम अब नजरे चुराते।
है खड़ी उसी किनारे कश्ती मेरी अब भी,
उस ओर बेवफाई के कंकड़ कभी मारे जाते।
रोकता ना हर्ष तुम्हें जाने से कभी इसकदर,
बस तुम में जो मैं था अगर तुम लौटा जाते।-
भीत पर सुशोभित वो तस्वीरें हमारी है,
है जर्जर ये मकान, यादें सिर्फ़ तुम्हारी है।
बन आश्रय मुद्दतों रखा गर्द से महफूज़,
बिस्तर पर पड़ी वो सिलवटें तुम्हारी है।
लौटे कू-ए-दोस्त, बेवक्त रूठे से बैठे थे,
दफ़न दिल में आज भी बातें तुम्हारी है।
यूं नज़र नहीं आएगा मंज़र-ए-ताराज अब,
बंद संदूकों में वो तस्वीर अब तुम्हारी है।
शब को हमारी ग़म-अंगेज़ कर इस कदर,
शुआ ए सहर पर अब ये नजरें तुम्हारी है।
फिर काफ़िर ये दिल-ए-मुज़्तर हो चला है,
दिलकश लाज़वाल ये खतायें तुम्हारी हैं।-
दास्तां-ए-जुर्म में अब मैं भी शरीक़ हूं तो हूं,
गुनहगारों की इस महफ़िल में शरीफ़ हूं तो हूं।
उन्हें पसंद नहीं हर रोज़ मिलना ऐसे हमारा,
अब मैं उनकी इस ग़ज़ल का रदीफ़ हूं तो हूं।
बचा मात्र एक जरिया उनके ज़ेहन में रहने का,
उनकी नींदों की कमबख्त तकलीफ हूं तो हूं।
मत लगाओ अब ये इल्ज़ाम की ईश्वर हैं वो मेरी,
मैं सजदे में खड़ा अकेला तन्हा हनीफ़ हूं तो हूं।
इतना भी क्यों बनना है दरियादिल अब ए हर्ष,
अब भी मैं कमबख्त दोज़ख का लतीफ़ हूं तो हूं।-
फांसले मिटा रही हो मुझसे, कोई लाचारी है क्या,
संयोग हमारा ए संगदिल, अभी जरूरी है क्या।
गई यूं जता मुझको आप कि बेवफाई की है मैंने,
रकीब ने दिया दगा, कर ली आपसे दूरी है क्या।
कह रहा था भाई कि देखा आपको बाहों में गैर के,
महक रही हो आप इतना, बाहों में कस्तूरी है क्या।
जताया था सरेआम कि काबिल नही मैं आपके,
कर रही हो दिल्लगी फिर, दिल की मंजूरी है क्या।
जन्नत की बातें अब यूं कर रही हो मुझसे आप,
हुआ नहीं पहले ये कभी, होठों में बांसुरी है क्या।
समझा चुका बिन आपके जीने का लहज़ा दिल को,
चाहती हो इश्क़ करना, दास्तां मेरी अधूरी है क्या।-
लहरों के बीच फ़र्त का अब लक्ष तलाश कर,
अपनों के बीच दुश्मनी का मंज़र तलाश कर।
चकाचौंध भरी इस महफ़िल से गर बचना है तुझे,
मय संग मयखानों में अब तू लश्कर तलाश कर।
जो लक्ष्य है अटल अडिग गर तेरा अब ए रकीब,
बाजुओं में फ़ौलाद ला अब शहपर तलाश कर।
फकत छोड़ अब रखना गैर की हरकतों पर नज़र,
हमराजों के आस्तीन में अब तू खंजर तलाश कर।
ना हो सानी जिसका काव्य सम्मेलनों में ए हर्ष,
अब इस दुनिया में तू ऐसा सुख़नवर तलाश कर।-
My Resentment towards you,
Similar to free pigeon in sky.
My sentiment towards you,
Similar to child wants to fly.
My emotions towards you,
Similar to a cute lover shy.
My life and destiny is you,
And I am your naughty lie.
Hey, let's meet this evening,
Where my ashes still left dry.
Just feel that moment with me
That will be a great goodbye.-
तलब बालिश की अश्कों से अपने बुझा आया हूं मैं,
दर्द सह कर हूं ख़ामोश, उन्हें सुकून दिला आया हूं मैं।
भर गया तोहमतों से मन तो निकाल फेकूंगा जिस्म ये,
बेबस हूं रकीब, इक रूह को किराए पर थमाया हूं मैं।
धधक उठे तपिश सीने की तो फनाह संग होऊंगा तेरे,
जलजले में बारूद से मकां फिर अब बना आया हूं मैं।
बढ़ रही मुफलिसी की सर्दी, धाव बर्फ़ संग ठिठुर रहे मेरे,
अहसानों की कमबख्त अब इक रजाई सिला लाया हूं मैं।
फकत शमशानों में लकड़ियां बिक रही ऊंचे दामों में हर्ष,
ये जान हरफों को अपने चंदन का इत्र लगा आया हूं मैं।-
है धायल जो दिल अब वहां आज आस लेकर आए हैं,
पता है यकीनन मिलेगी ख़ामोशी, यहां सब पराए हैं।
बेखबर नहीं हूं रकीब उनके दास्तां-ए-जुल्म से अबतक,
मगर दिलजले हैं, हर ज़ुल्म पर हंसने की कसम खाए हैं।
चल निकला हूं मैं मगर ज़िक्र होता होगा महफिलों में,
शायद इसीलिए ज़ख्मों पर छिड़कने को नमक लाए हैं।
आवाज़ है मुझमें बस बैठा ख़ामोश हूं यही अब सोचकर,
मतलब फिर निकला होगा कुछ तभी तो संदेशे आए हैं।
अभी बस सह लो किसी तरह इन नामाकूलों को हर्ष,
आज फिर ये चाशनी में खंजर विषैला डूबा लाए हैं।-
ए कलम सुन चल आज इक उम्दा ख्यालात लिखते हैं,
हुस्न-ए-परी के करोकद्र में तनिक जज़्बात लिखते है।
अक्स पा महज़ तल्लीन हो जाता है चांद भी उनका,
स्याही से यादों की आ अब दिल की बात लिखते हैं।
दिलजलों की बस्ती को आरज़ू है उनके ठहराव की,
तो आ छनछनाते पायल की अब छमकार लिखते है।
करोकद्रगी की मुंताजिर है, तोहफ़े भी हैं पसंद उन्हें,
लफ्ज़ कम पड़ेगा उनको चल पूरी किताब लिखते हैं।
फरमाइशें करते नहीं दिलजले फ़र्श के अर्श से हुज़ूर,
चल आ हर्ष-ए-नफ़्स की ज़िंदगी अब बेदाग लिखते हैं।
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