भुला बैठा वो सर्दी को,शहर के सारे कंकर को, पहनकर पांव में जूते, चला वो शान से घर को, नजर भरकर निहारे वो, बात जूतों से करता है, दुआएं लाख दीदी को,उठाया हाथ अम्बर को।
मां के नयन नीर, तात तिष्ठ अधीर, पत्नी से दुष्टता, पति से कर्कशता, दीन की आह, संसृष्ट का दाह, भाई से छल, बेजुबान पर बल, सहगामी से झूठ, बच्चों को अत्यधिक छूट, तरुवर को काटना, राह शूल से पाटना, वगैरह-वगैरह..… भारी पड़ेगा, बड़ा भारी पड़ेगा।
स्वयं के निर्माण का, भोग के बलिदान का, चिंतन करो, मनन करो, क्यों आप शांत हैं? शत्रु विकट दुर्दांत हैं, इंतजार मत करो, यद्ध की उद्घोषणा का, आक्रामक सम्प्रेषणा का, शमशीरों को दोधार दो, तकदीरों को ललकार दो, ऐसा अभ्यास करो रण का, वैरी संत्रास करे क्षण का, दुश्मन जब तेरा जयघोष सुने, घुटने टेके और समर्पण चुने, आपका पौरुष ही आपकी जय है, इसे और बढ़ाओ, यही सही समय है। यही सही समय है।
तनिक हवा में उड़ने वाले, जमीं से रिश्ता बनाये रखिये। बादलों से घुमड़ने वाले, जमीं से रिश्ता बनाये रखिये। इसी में मिलकर सुकूँ मिलेगा, आएगी तुझको नींद लंबी। जरा सी आहट में जगने वाले, जमीं से रिश्ता बनाये रखिये।