लिखा है यदि उसने
तो कुछ अच्छा लिखा होगा
और यदि लिखना है मुझे
तो मैं उससे बेहतर लिखूंगा।-
गांव की गलियां, गांव की शाम
फूलों की बगिया, बागों के आम
बरसात बादलों की, टहनी की छांव
हम मिट्टी के, ये मिट्टी के गांव
वो गांव के मसले, वो गेहूं की फसले
वो शीत की राते, वो मीत की बाते
वो चांद की चांदनी, वो सुबह सुहावनी
वो महीना सावन का, वो बंधन पावन सा
वो रिश्तो के धागे, वो धागों में बांधे
वो बांध के ना छोड़े, वो जोड़े की जोड़े
वो नीम की छांव, वो छांव के ठाव
हम मिट्टी के ये मिट्टी के गांव।-
टूट जाती है , कुछ शाखाएं
आंधी आ जाने से
थोड़ा ज्यादा नुकसान होता है
कोई झोंका तूफानी आ जाने से
लेकिन बिखर जाता हैं पूरा बाग
गलत माली आ जाने से।-
आंखों में नींद है
थका हारा सा हूं
मैं अपनी ही शर्तों पर
मारा मारा सा हूं
देखता हूं अतीत को
घुट गये कुछ सपने वहां
आता हूं वर्तमान में
देख रहा हूं मरते
कुछ सपने यहां
अब भविष्य की आश में
और समय के पाश में
सब अंधियारा अंधियारा सा है
आंखों में नींद है
शरीर थका हारा सा है।
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चुप रह गये वो चांद तारे
जो हर बात मुझसे बोला करते थे,
कुछ सुनते थे मेरी
कुछ अपने राज खोला करते थे।-
बदल जाती है चाल
बोली भी बदल जाती है
जब शराब गले के नीचे उतर जाती है
गिर जाते है पर्दे
किरदार निकल कर आते है
कोई शख्स ऐसा भी हो सकता है
तब हम समझ पाते हैं
समझ पाते हैं कि,
कितना खाली है वह अंदर से
या जान जाते हैं कि
शराफत का चोला ढक रखा है तन पे
इंसान के अच्छे बुरे किरदार नजर आते हैं
जब शराब के घूंट
गले के नीचे उतर जाते हैं-
चेहरा देखते रहे
पैर देखना भूल गये
और फिर कहते हैं
बच्चे हाथ से छूट गये
चमक न देखी होती
चेहरे की
चाल देख ली होती
यदि पैरो की
तो पछतावा न होता
और यूं सरेआम
बदनामी का ये
तमाशा न होता
~हर्ष दांगी-