तुमने छोड़ा तो तन्हाई के हो गए
जिगर के मानो चार टुकड़े से हो गए
हाल बेहाल था जैसे मरने के बाद धड़कता दिल हो
देखते ही देखते अपनी मोहब्बत से दूर हो गए-
इतना क्यों है गुमान तुझे अपनी दौलत पर ए- इंसान
मिट्टी के इस शरीर को बनना तो है कंकाल।
अंधेरे से बाहर निकल, रख अपने अस्तित्व का मान
माया के नक़ाब से छुपा मत तू बुनियादी पहचान।
श्रृंगार में मसरूफ़ हुआ,अब कर कुछ दूसरों के नाम
शैतानी अक्स बिछा रहा देह-अभिमान का जाल।
जी ले इन शेष लम्हों को,घसीटना नहीं तू ज़िन्दगी के साल
रिहा हो इस कैद से देख आ गया कलियुग का काल!!!-
मोहब्बत करनी चाही तुझसे
लेकिन नफ़रत का पाठ पढ़ाया
तेरे इश्क़ की है फ़ितरत ऐसी
इस फ़रहाद को फ़रेबी बनाया
कैफ़ियत पूछनी चाही तुझसे
अहद-ए-उल्फ़त को गंवारा बताया
इज़हार की थी जुनूनियत ऐसी
इस फ़रहाद को फ़रेबी बनाया
-
If you wait for the perfect conditions, you'll never get anything done.
-
Make logic a basis for reasoning rather than a mere explanation
-
बता देना उन्हें आज भी कितना चाहते है हम
सामने कभी आ वो गए तो नज़रे मिला ना सकेंगे हम
उनसे जुदा जो हुए अपने को संभाल ना पाए हम
दिल तो दिया था ऐतबार करके पर फिज़ा ऐसी कि बेवफ़ा निकले तुम।
-
आज ऐहसास हुआ दोस्त और जिगरी में बहुत फ़र्क होता है,
जो इतने ख़ास होने के बाद भी खास ना हो वो ख़ाक दोस्त होता है।
नामोदारी के लिए तो कतार में तमाम खड़े होते हैं,
जो असल वक़्त काम आए वहीं वास्तव में जिगरी होते हैं।
जब थी ज़रूरत इस ज़ख्मी जिगर को अपने जिगरियो के साथ की,
तब मिली तोहफ़े में औपचारिकताएं जिस्म की मंज़ूरी के बाहर थी।
चाहता तो था जब-जब आँखें खुले नसीब हो मुस्कान तुम्हारे चेहरे की,
पर वक़्त की बेरहमी ऐसी कि भाग्य में तुम्हारी दुआ भी न मिली।
अब जब मौत को हताश करके ताक़त का आंकलन होता है,
तब समझा कि जिगरी तो बस इक्का दुक्का ही होता है।-