Harman deep kaur  
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Joined 21 January 2018


Joined 21 January 2018
4 FEB 2023 AT 3:04

मैं
तुम्हारा तब तक इंतज़ार करूंगी
जब तक कि तुम
स्टेशन के बाहर
हाथ में गुलाब का गुलदस्ता लिए
दूर से देखकर मुझे
अपनी बाहें नहीं फैलाओगे
और मैं झट से तुम्हें देखकर
तुम्हारे पास दौड़ कर नहीं आऊंगी
मैं .....
उन दर्जनों चेहरों में
तुम्हे तब तक तालाशूंगी
जब तक कि तुम खिड़की वाली सीट पर बैठे
मुझे तुम्हारे कोच तक आने पर
मुस्कुरा नहीं दोगे
मैं .....
हर इक शख्स से तुम्हारे बारे में
तब तक बातें करूंगी
जब तक कि वो तुमसे मिले बिना
तुम्हें पहचान ना लें.....।
मैं.....

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15 DEC 2022 AT 3:30

अक्सर ऐसा कहा जाता है कि...
आदमी के दिल का रास्ता
उसके पेट से होकर गुजरता है
औरत के हाथ में जादू होना चाहिए,
जादू जिससे आदमी खुश रहे
वो जैसे जादूगर निकालता है ना
टोपी से खरगोश,
और बच्चा खुश होकर बजा देता है .. ताली
बस..... वैसा खुश
इससे दोनो के रिश्ते में
दरार नहीं आएगी
दरारें कर देती है ना सब कुछ अलग
और फिर झट्ट से बिखर जाता है रिश्ता
उन दोनो के बीच
खैर छोड़िए अगर दरार आ भी गई
तो पेट का रास्ता तो है ही
जानते है कि कितने वैज्ञानिक, शोधकरता
हुए हैं दुनिया में?
मगर कोई नहीं ढूंढ पाया है....
"औरत के दिल का रास्ता"
सुना है कि कोशिश अभी भी जारी है
वो हस्तीमल हस्ती जी ने कहा है ना कि
लम्बी दूरी तय करने में वक्त तो लगता है।


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1 APR 2022 AT 6:16

दिल जब आकार ले रहा था
तब प्रेमी और प्रेमिका
साथ चल रहे थे
साथ में हंसना, रूठना, मुस्कुराना
फिर धीरे धीरे वे दोनों समांतर
रेखाओं की तरह दूर होते गए
इतना दूर मानो के जैसे कभी साथ ना थे
साथ में हंसना, रूठना, मुस्कुराना
कुछ भी नहीं
रेखाएं बढ़ती गई
प्रेम घटता गया
दोनो ने सोचा यही जीवन है
एक दूसरे से दूर
एक दूसरे के बगैर
दोनों की अपनी नई दिशा, नई ईर्षा
बहुत साल बाद जब इर्षा खत्म हुई
और मिलने की तैयारी शुरू
दोनो अपने रास्ते छोड़ फिर
एक दूसरे की तरफ मुड़े
झुके तो जाना
दिल ने आकार ले लिया है
अब वह आसमंतर रेखाएं
मिल कर नए आकार में
सुंदर, पूर्ण हो गई है
अब प्रेमी और प्रेमिका जानते हैं
दोनो का झुकना ही "प्यार है".....

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5 MAR 2022 AT 4:40

तुम मुझसे होकर गुज़रे हो
और तुम्हारे कुछ लम्हें
सम्मेट के रख लिए हैं मैंने
ख़ाक होते कुछ खत तुम्हारे
संभला हुआ सा इक एहसास
चंद कागज़ है बिखरे हुए से
रखे हैं तुम्हारे बाद
इक कैसेट है गज़लो वाली
लिखा है उसपर..... "फुर्सत के लम्हे"
तुम मुझसे हो कर गुज़रे हो
और तुम्हारे कुछ लम्हें.....।

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29 OCT 2021 AT 18:23

ना बादल, ना बिजली
ना बरखा, ना सावन
ना सूरज, ना चांद
ना पतझड़, ना जाड़ा
ना ख्वाहिश, ना आस
ना दूर, ना पास
ना नदिया, ना सागर
ना कश्ती, ना किनारा
ना फूल, ना खुशबू
ना गजरा, ना माला
ना मेंहदी, ना कुमकुम
ना चूड़ी, ना कंगन
ना सुरो की सरगम
"तुम" बस मेरा "ख्वाब" हो......

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17 OCT 2021 AT 21:51

चेहरे के एक तरफ तुम्हारे,
ये लट बड़ी अच्छी लगती है
लट में अटका हुआ वो
टिकटोक वाला काला पिन,
पिछली बार जो तुमने नीली
साड़ी पहनी थी ना
मेरी "मां" से मिलना तो वो ही पहनना
तुम कैसे साड़ी से नेल पॉलिश
एक दम मैच करके लगा लेती हो
रंगो की अच्छी पहचान है तुम्हे
आज फिर तुम एक पायल
वही मेज़ पर छोड़ आई हो
देखो आज तुम्हारी एक नही चलेगी
शाम को भुनी शकरकंदी ही खायेंगे
तुम्हें याद है मेरी स्क्रैप बुक
उसका आखरी पन्ना, उसे तुम ही भरना
तुमने काजल लगाना छोड़ दिया क्या?
बिना काजल तुम्हारी आंखे सुनी सुनी लगती है
सोलह सोमवार के व्रत पूरे हो गए क्या तुम्हारे?
"जॉन एलिया" की "फरिहा" पढ़ी क्या तुमने?

चंद मिनटों में भी वो मुझसे मेरी ही बातें करता है...।

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10 SEP 2021 AT 17:34

रहती है जब तक माँ के घर में,
बिटिया को तब तक रानी कहते है,
शून्य के समान है मूल्य जिसका
आंसुओं को आज कल पानी कहते है,
था सोचा कभी के बिताएंगे जिंदगी साथ,
किसी और को अब वो जानी कहते है,
वो तेरा ही शहर है ना बिखरा हुआ सा,
महोब्बत को जहां लोग फानी कहते है,
उसकी बेटी से होती है पराए घर में रोशनी
पिता को सबसे बड़ा दानी कहते है,
माँ कहती है जिसको,"माँ" और मामा भी "माँ" कहता है
हम बच्चे प्यार से उन्हें नानी कहते है।

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22 JUL 2021 AT 0:26

तुमसे ये कैसे अब छुपाऊ
मुझपर क्या क्या बीती है
खुद अपने ज़ेहन मे मैंने
लाखों ही जंग जीती है
बात बात पर तंज़ कर देना
तुम्हारे यहाँ की रीति है
कैसे तुमको रोक लेती है
खुद वो रोज़ ही पीती है
वो तो अपनी धुन में खुश है
उसकी अपनी नीति है
सुना है आज कल मशरूफ बड़ी है
ज़ख़्म अपने खुद सीती है
तुमसे ये कैसे अब छुपाऊ
मुझपर क्या क्या बीती है.......।

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19 JUN 2021 AT 22:48

जो पूछते है,
खुद ही खुद की खुदी से
वो वक़्त पर ज़वाब पाते है क्या?
जो देखते है,
अपने ही अंदर ईश्वर को
वो वक़्त पर दिख जाता है क्या?
जो खाते है,
दर दर की ठोकरे
मंज़िल को ज़ल्दी पा लेते है क्या?
जो चले जाते है,
वक़्त से पहले
वो तारों के बीच नज़र आते है क्या?
जो बैठे है,
सरहद पर आपके लिए दिन रात
उनके किस्से आप अपने बच्चों को सुनाते है क्या?
जो मिलाते है,
कुंडलिया शादी से पहले
साथी को जाने से रोक पाते है क्या?
जिनके पास वक़्त ही नहीं है,
माँ के साथ बैठने का
अपनी महबूबा के साथ बैठ पाते है क्या?

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25 MAY 2021 AT 23:21

खुद भी जलती है वो चूल्हे के साथ
जिसे तुमने नकारा समझा है
उसकी आंखें तो अदब से झुकती है
जिसे तुमने इशारा समझा है
चाहे तो रुख मोड़ देगी हवाओं का
जिसे तुमने बेचारा समझा है
ना निकले वो घर से तो सूनी हो जाती है गलिया
जिसे तुमने आवारा समझा है
हाथ रखा है कंधे पर के बस छू ले तुमको
जिसे तुमने सहारा समझा है
उसकी कीमत क्या लगाओगे बाज़ार में जा कर
जिसे तुमने ख़सारा समझा है।

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